Friday 29 November 2013

भारत का विदेशमंत्री सलमान खुर्शीद अरब देशो में बने इस्लामिक एजेंडे पर काम कर रहा है ..





मित्रो, एक आरटीआई एक्टिविस्ट ने भारत सरकार से पूछा की तेजपाल के तहलका द्वारा किया गया गोवा थिंक फेस्ट में आतंकी सन्गठन तालिबान के उपप्रमुख मुल्ला जईफ़ को वीजा क्यों और किसके सिपारिश पर मिला ??

जबाब था :-
१- आईबी चीफ आसिफ इब्राहीम [IPS] [धर्म - मुस्लिम ]
२-विदेश मंत्रालय के प्रमुख प्रवक्ता सैयद अकबरुद्दीन [IFS] [धर्म - मुस्लिम]
3- विदेश मंत्री भारत गणराज्य सलमान खुर्शीद [ धर्म -मुस्लिम]


मित्रो, ये सिपारिश अपने आप में बहुत कुछ कह जाती है .. भारत की मेनस्ट्रीम मीडिया इस गम्भीर मामले पर चुप है ..

क्या केंद्र सरकार जबाब देगी ??

१- क्या अब भारत के मुस्लिम अधिकारी अयातुल्लाह खुमैनी के बनाये गाइडलाइन पर काम कर रहे है ? जिसमे उसने कहा था की दुनिया के हर मुस्लिम को पहले ये समझना होगा की वो इस्लाम का फर्ज अदा करे बाद में कोई और फर्ज अदा करे ,,और यदि उसके पेशे, नौकरी आदि के फर्ज और इस्लाम का फर्ज हो तो वो अपने पेशे के फर्ज को भूलकर इस्लाम का फर्ज अदा करे ... और दुनिया का हर मुस्लिम "मुस्लिम ब्रदरहुड" की भावना से काम करे

२- क्या भारत सरकार को पता नही था की तालिबान एक खूंखार इस्लामिक आतंकी सन्गठन है तो फिर उसके उपप्रमुख मौलाना जईफ जो नाटो का वांटेड खूंखार हत्यारा है उसे वीजा क्यों दिया गया ??

३- भारत का पूर्वगृहमंत्री और वर्तमान वित्त मंत्री इस खूंखार आतंकी से होटल में क्यों बैठक किया ? उस बैठक का एजेंडा क्या था और उस बैठक का मिनट्स ऑफ़ मीटिंग जाहिर क्यों नही किया गया ?

४- क्या ये सत्य है की कांग्रेस ने तालिबान के उपप्रमुख को इसलिए भारत बुलाया ताकि नरेंद्र मोदी की हत्या की सुपारी तालिबान को दी गयी है ??

ये एक बहुत ही गम्भीर मामला है और मै भारत की मीडिया से अपील करता हूँ की इस गम्भीर मामले को देश के सामने उठाये

बंगाल से दिल्ली में पत्रकार बनने का सपना लिए चंद सालो पहले दिल्ली आई शोमा चौधरी आज अरबो की जायजाद की मालिक कैसे बन गयी ???





मित्रो, तहलका रेप केस में बलात्कारी तेजपाल को जी जान से बचाने वाली शोमा चौधरी की कुंडली अब खंगाली जा रही है | ये महिला चंद सालो पहले बंगाल से दिल्ली आई थी .. आँखों में बड़े बड़े सपने थे और दिल में उन सपनों को साकार करने के लिए किसी भी हद तक जाने का साहस था |


कुछ इधर उधर काम करने के बाद एक पेज थ्री पार्टी में इनकी मुलाकात तहलका के तरुण तेजपाल से हुई .. तरुण तेजपाल के बारे में मीडिया जगत में एक चर्चा है की उनकी आँखे किसी भी महिला पत्रकार के आँखों से लेकर सब कुछ टटोलती है फिर जब वो भांप लेते है की कोई महत्वाकांक्षी महिला किसी भी हद तक जाने को तैयार हो जायेगी तब उसका एप्वाइंटमेंट तहलका में हो जाता है |

तहलका में प्रोमोशन का क्या पैमाना है ये आज तक किसी को नही पता चल सका क्योकि काफी जूनियर रही लेकिन काफी खूबसूरत राना अय्यूब बड़ी तेजी से प्रोमोशन पाते हुए एडिटर तक पहुंच जाती है जबकि कई उम्रदराज महिला या पुरुष पत्रकार संवाददाता तक ही पहुचे |

तरुण तेजपाल की लम्पटगिरी से उनके साथी रहे कई लोग उनका साथ छोड़ चुके ..जैसे तहलका को शुरू करने में साथी रहे अनिरुद्ध बहल और आशीष खेतान जैसे पुरुष पत्रकारों को लगा की चूँकि तरुण तेजपाल होमोसेक्सुअलिटी में रूचि नही ले रहे है इसलिए उनका तहलका में कोई भविष्य नही है इसलिए उन्होंने तहलका छोड़ने में ही अपनी भलाई समझी |

आज शोमा चौधरी का दिल्ली के पॉश साउथ दिल्ली में बड़ा बंगला है .. गुडगाँव में फार्महाउस है .. नैनीताल में रिजोर्ट है ..


पत्रकार ही नहीं बड़ी कारोबारी भी हैं शोमा

साथी महिला पत्रकार के यौन उत्पीड़न के आरोपों का सामना कर रहे तहलका पत्रिका के पूर्व संपादक तरुण तेजपाल को कथित तौर पर बचाने के आरोप से आहत होकर पत्रिका की मैनेजिंग एडिटर की कुर्सी छोड़ने वाली शोमा चौधरी सिर्फ पत्रकार नहीं हैं। शोमा लाखों-करोड़ों रुपए का कारोबार कर रहीं कंपनियों की शेयर होल्डर भी है।
तहलका पत्रिका को प्रकाशित करने वाली कंपनी अनंत मीडिया प्राइवेट लिमिटेड के 66.75 फीसदी शेयर रॉयल बिल्डिंग्स एंड इन्फ्रास्ट्रक्चर प्राइवेट लिमिटेड के पास हैं। यह कंपनी केडी सिंह की है जो तृणमूल कांग्रेस के नेता हैं।

अनंत मीडिया प्राइवेट लिमिटेड के अन्य साझेदार इस तरह से हैं-

तरुण तेजपाल 19.25 फीसदी
नीना तेजपाल (बहन) 1.55 फीसदी
मिंटी तेजपाल (भाई) 0.5 फीसदी
शकुंतला तेजपाल (मां) 0.13 फीसदी
इंदरजीत तेजपाल (पिता) 0.13 फीसदी
गीतन बत्रा (पत्नी) 0.25 फीसदी
शोमा चौधरी 0.5 फीसदी
कपिल सिब्बल 0.04 फीसदी
राम जेठमलानी 0.08 फीसदी
साइरस 0.43 फीसदी
राजस्थान पत्रिका 1.96 फीसदी
आयशर गुडअर्थ 0.04 फीसदी
व अन्य


थिंकवर्क्स प्राइवेट लिमिटेड

इस कंपनी के 10 फीसदी शेयर शोमा चौधरी के पास हैं। वहीं, इतने ही शेयर नीना तेजपाल और 80 फीसदी शेयर तरुण के पास हैं। इसी कंपनी ने गोवा में थिंकफेस्ट आयोजित किया था, जहां कथित तौर पर तेजपाल ने महिला पत्रकार का यौन उत्पीड़न किया था। इस कंपनी के पास कुल 14.2 करोड़ का राजस्व है।


अमररमन इंडिया प्राइवेट लिमिटेड (यह कंपनी क्या काम करती है, साफ नहीं है)

तरुण तेजपाल 70 फीसदी
केडी सिंह 10 फीसदी
शोमा चौधरी 10 फीसदी
नीना तेजपाल 10 फीसदी


आखिर तरुण तेजपाल शोमा चौधरी पर इतने मेहरबान क्यों थे ??

शोमा चौधरी का असली नाम सुपर्णा चौधरी है ... ये महज कुछ साल पहले ही तहलका में आई थी .. और आने के चंद महीनों के भीतर ही तेजपाल ने इन्हें तहलका का पार्टनर बना दिया था

शोमा चौधरी के कारोबारी हितों की चर्चा मीडिया में तेजी से हो रही है। शोमा को लेकर चौंकाने वाले खुलासे हो रहे हैं। शोमा चौधरी को तहलका को छापने वाली कंपनी अनंत मीडिया ने 10 रुपए के मूल्य पर 1500 शेयर अलॉट किए थे। तब वे पत्रिका की फीचर संपादक हुआ करती थीं। 14 जून, 2006 को शोमा ने 500 शेयर एके गुर्टू होल्डिंग्स प्राइवेट लिमिटेड नाम की कंपनी को 13,189 रुपए के प्रीमियम पर बेच दीं। इस तरह से शोमा ने करीब 66 लाख (65,94,500 रुपए) रुपए का मुनाफा बटोरा। शोमा ने अनंत मीडिया के 1500 शेयर खरीदने के लिए 15000 रुपए की रकम खर्च की थी। इसका मतलब यह हुआ कि 5 हजार रुपए में खरीदे गए अनंत मीडिया के 500 शेयरों ने तीन सालों के भीतर शोमा को 66 लाख का मुनाफा दे दिया।

चौंकाने वाली बात यह है कि अनंत मीडिया और उससे जुड़े लोगों के लेनदेन को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं। 14 जून, 2006 को जिस दिन शोमा ने अपने शेयर करीब 13189 हजार रुपए में बेचे थे, उस दिन ही तरुण तेजपाल ने शंकर शर्मा और देविना मेहरा से 4,125 शेयर 10 रुपए प्रति शेयर मूल्य पर खरीदे थे। मतलब एक ही दिन में एक ही कंपनी यानी अनंत मीडिया के शेयरों के कई दाम थे। एक तरफ कुछ लोग उसे 10 रुपए में खरीद रहे थे, तो वहीं कुछ लोग उसे 13189 रुपए में। जबकि उस दिन कंपनी का नेट एसेट वैल्यू नकारात्मक था। इसका मतलब यह हुआ कि कंपनी के एक शेयर की असल कीमत उस दिन 10 रुपए भी नहीं थी। लेकिन उस दिन 10 रुपए के शेयरों को 2000 से लेकर 13000 रुपए से ज्यादा की कीमत पर बेचा गया।





अगर आप पिछले पांच सालो का तहलका का एकाउंट देखेंगे तो साल दर साल तहलका को करोड़ो रुपयों का घाटा हुआ है ... ये घाटा साल दर साल बढ़ता ही गया है |

फिर भी तहलका हर साल गोवा में "थिंक सेक्स फेस्ट" कैसे आयोजित करती है ? ये आयोजन गोवा के एम् फाइव स्टार होटल में होता है और मेहमानों के रुकने के लिए गोवा के सारे फाइव स्टार होटलो में कमरे बुक किये जाते है ... विदेशो से भी सैकड़ो वक्ता बुलाये जाते है उन्हें लाखो रूपये का मेहनताना, आने जाने का प्लेन टिकट दिया जाता है |

इतना ही नही शोमा चौधरी जिनके पास बीएमडबल्यू कार रही उन्होंने अभी हाल ही में बेंटले खरीदा है .तरुण तेजपाल और उनका पूरा परिवार शाही जीवन जीने का आदि है ..उसके लिए पैसे कौन दे रहा है

तहलका की दिल्ली और मुंबई ऑफिस में करीब ३४० लोग काम करते है .. उन्हें हर महीने सेलेरी और अन्य भत्ते रेगुलरी कैसे मिल रहा है ????

तहलका पांच सालो से घाटे में है लेकिन इसके किसी ही एम्प्लाई को देखकर कोई कह नही सकता की तहलका घाटे में है
 











 

Monday 22 July 2013

कंधमाल में हिन्दू संत स्वामी लक्ष्मणानंद की हत्या का मुख्य आरोपी ईसाई धर्म स्वीकार कर चूका और अब फादर बन चूका फादर अजय कुमार सिंह को हिन्दुओ के उपर हमले का केंद्र सरकार ने पुरस्कार दिया ... हिन्दू संत स्वामी लक्ष्मणानंद का हत्यारा फादर अजय कुमार सिंह को केंद्र सरकार की अल्पसंख्यक आयोग "अल्पसंख्यक मैंन" का पुरस्कार देने जा रही है |


अजय कुमार सिंह के बारे में स्थानीय जिला प्रशासन भी नकारात्मक रिपोर्ट भेज चुकी है यह कहते हुए कि अगर अजय कुमार सिंह को पुरस्कृत किया जाता है तो कंधमाल में इसका गलत संदेश जाएगा क्योंकि आदिवासियों के बीच उनकी छवि अच्छी नहीं है। स्थानीय पुलिस प्रशासन और जिला प्रशासन ने संयुक्त रूप से अल्पसंख्य आयोग को जो रिपोर्ट भेजी है उसमें कहा है कि अजय कुमार सिंह के बारे में आदिवासियों में स्पष्ट धारणा है कि वे इलाके में धर्मांतरण के काम में लगे हुए हैं। इसलिए अगर उन्हें पुरस्कृत किया जाता है तो आदिवासियों को इससे धक्का पहुंचेगा।

लेकिन अल्पसंख्यक आयोग के प्रमुख वजाहत ह्जिबुल्लाह ने कहा की हमारे पास केंद्र सरकार ने दो नामो को भेजा था .. तीस्ता जावेद सेतलवाड और फादर अजय कुमार सिंह .. हमने कई पहलुओ पर विचार करने के बाद पाया की फादर अजय कुमार सिंह "माइनारिटी मैन" पुरस्कार के लिए सबसे उपयुक्त है |

सोचिये मित्रो, केंद्र की कांग्रेस सरकार को माइनारिटीमैन पुस्स्कार के लिए सिर्फ दो नाम ही दिखे ..पहला तीस्ता जावेद सेतलवाड जो सिर्फ और सिर्फ गुजरात और मोदी मोदी कहकर अपनी छाती कुटती है ..
और दूसरा नाम फादर अजय कुमार सिंह जिसने कंधमाल में सालो से चर्चो के इशारो पर गरीब आदिवासियों के धर्मांतरण में जुटा हुआ है ... और जिसने अपने रास्ते के सबसे बड़े रोड़े हिंदूवादी नेता स्वामी लक्ष्मणानंद जो कंधमाल में चर्चो को बेनकाब करने में जुटे हुए थे और बड़े पैमाने पर परिवर्तित ईसाईयों को वापस हिन्दूधर्म में ला रहे थे .. उनकी हत्या कर दी

मित्रो, मै अपने पहले वाले पोस्ट में एक कांग्रेस नेता के द्वारा मोदी जी का झाड़ू लगते हुए फोटो डाला था वो असल में कांग्रेसियो ने मोदी जी का उपहास और मजाक बनाने के लिए इस फोटो को मार्फ़ करके बनाया है | लेकिन क्या इन नीच कांग्रेसियो को किसी के मेहनत का मजाक उड़ाना अच्चा लगता है ?? क्या झाड़ू लगाने वाला व्यक्ति इन्सान नही होता ?? असल में ये नीच कांग्रेसी कभी मेहनत नही करते इनकी मालकिन जो घोटाला करती है उसमे से चंद टुकड़े इन कुत्तो के आगे भी फेक देती है .जिसे चबाकर ये कांग्रेसी अपना गुजरा करते है ..इसलिए इन्हें आम हिंदुस्थानी के मेहनत का पता ही नही होता |



अरे दोगलो ... भारत के खजाने को लुटकर इटली भेजने वाली डायन से ये झाड़ू लगता व्यक्ति ज्यादा पूज्यनीय है क्योकि ये अपने मेहनत का खा रहा है .. किसी घोटाले के पैसे से ये अमेरिका में अपने खुनी बवासीर का इलाज नही करवाने जाता

एक बड़े कांग्रेसी नेता ने मोदी जी के इस नकली मार्फ़ फोटो को डालकर उपहास उड़ा रहा है कि एक समय संघ कार्यालय में झाड़ू और पोछा लगाने वाला व्यक्ति भारत का प्रधानमंत्री बनने की सोच भी जैसे रख सकता है |

मित्रो, मोदी जी का पूरा जीवन बहुत गरीबी और संघर्शो में बिता है .. उनको पढने का बहुत शौक था .. वो जब अहमदाबाद के संघ कार्यालय हेडगेवार भवन में रहते थे और साथ ही गुजरात कालेज में पढ़ते भी थे तब किताबे खरीदने और फ़ीस भरने के लिए उन्होंने कार्यालय में प्रमुख से कहा की आप किसी और से पुरे कार्यालय में झाड़ू पोछा लगवाते हो मै पुरे कार्यालय में हर रोज झाड़ू पोछा लगाऊंगा और जो पैसा आप दुसरे को देते हो उस पैसे से मै अपनी फ़ीस भरूँगा और किताब कापी खरीदूंगा |

फिर मोदी जी हर सुबह बड़े लगन से पुरे कार्यालय में सफाई करते थे फिर कालेज जाते थे फिर शाम को शाखा लगाते थे फिर रात को एक बार फिर पुरे कार्यालय की सफाई करते थे |

मित्रो, असल में आज दोगले और नीच कांग्रेसी भारत की मूल संस्कृति तो दूर अपने ही पुराने नेताओ के जीवन से प्रेरणा नही लेते है ... इन दोगलो को पता ही नही है की लाल बहादुर शास्त्री का जीवन कितनी गरीबी में बिता है .. उनके पास नाव वाले को देने के पैसे नही थे और वो अपने पीठ पर अपना स्कुल बैग बांधकर उफनती गंगा नदी को तैर कर पार करते थे .. किताबे खरीदने के लिए कई एकड़ गन्ने के खेतो को कुदाल से जोतते थे .. और एक दिन भारत के प्रधानमंत्री बने |

इन दोगले कांग्रेसियो ने अपने ही नेता सरदार पटेल के जीवन को भी नही पढ़ा है .. की उन्होंने अपने जीवन में कितने संघर्ष किये है |

और तो और लगता है इन नीच कांग्रेसियो ने अपनी मालकिन सोनिया गाँधी का भी जीवन नही पढ़ा है .... बेचारी जब पैदा हुई तब उसके पिता चार सालो से जेल में बंद थे ,, वो तो उस समय ब्लुत्रुथ से बच्चे पैदा करने की तकनीक इटली में विकसित हो गयी थी ...

फिर उनके पिता इटली के जानेमाने अपराधी और शराबी थे ..इसलिए उनके घर पर हर रोज पुलिस का छापा पड़ता था .. जिससे पूरा परिवार तंग रहता था .. फिर एक दिन सोनिया के माँ को पता चला की कस्बे की कई लडकिया लन्दन में वेटर का काम करने के लिए जा रही है तो माँ ने सोनिया को भी उस ग्रुप के साथ भेज दिया ... सोनिया को कैम्बिज शहर के एक बार में वेटर की नौकरी मिल गयी क्योकि उस बार का मालिक सिर्फ लडकियों को ही इसलिए नौकरी पर रखता था ताकि लम्पट स्टूडेंट्स लडकियों के तरफ आकर्षित होकर उसके बार में आये |
आखिर हम मोदी को क्यों न बनाये अपना प्रधानमंत्री...?

मित्रो यह फोटो कांग्रेसियों ने आदरणीय मोदी जी का उपहास करने के लिए डाली थी.

लेकिन उन्हें क्या मालूम था की मोदी जी की यह फोटो सामने आने के हम लोगो के दिलो में और सम्मान आदर बड जाएगा .

आज मोदी जी जिस मुकाम पर है ये उनकी मेहनत लगन और राष्ट्रभक्ति का ही नतीजा है ..
आज कांग्रेस्सियो को डर है कहीं मोदी जी गुजरात की तरह पुरे देश से कांग्रेस जेसी देशद्रोही पार्टियों का सफाया न कर दे ..

आज भारत में नरेन्द्र मोदी जी के सिवा और कोई विकल्प नहीं है हमारे पास, या कांग्रेस रूपी कचरे को साफ़ करने मोदी जी ही एकमात्र समाधान हैं ??

चाहे दुनिया इधर की उधर हो जाए - भारत के प्रधानमंत्री पद को नरेन्द्र भाई अवश्य सुशोभित करेंगे..!!

मेरे आका मेरा ईनाम ?? -- संजीव भट्ट ||| तुमको ईनाम नही मिलेगा बल्कि तुम्हारे साथ वही सुलूक होगा जो एक गद्दार के साथ होता है -- कांग्रेस



मित्रो, मुझे एक ऐतिहासिक घटना याद आ रही है ... जब महमूद गजनवी सोमनाथ पर हमला किया था तब उसे एक पुजारी ने ही ईनाम के लालच में बताया था की मन्दिर में किस जगह कितना सोना रखा है ..
जब वो लुटकर जाने लगा तब उस पुजारी ने कहा की मेरा ईनाम दो ..... फिर महमूद गजनवी के तलवार निकली और कहा की तुझ जैसे कौम के गद्दारों को ईनाम नही बल्कि तुम्हारा सर कलम होना चाहिए क्योकि जो इन्सान अपने धर्म का नही हुआ उसे जिन्दा रहने का हक नही है .. फिर गजनवी ने उसका सर कलम कर दिया |


ठीक ऐसा ही कांग्रेस की केंद्र सरकार ने संजीव भट्ट के साथ किया | आज सुबह सुबह गुजरात सरकार के पास केन्द्रीय गृहमंत्रालय का एक पत्र आया ..जिसमे केन्द्रीय गृहमंत्रालय ने संजीव भट्ट के खिलाफ पद के दुरुपयोग, हिरासत में मौत और टार्चर को लेकर कड़ी करवाई करने की अनुमति दी ... केन्द्रीय गृहमंत्रालय ने ये भी कहा की गृहमंत्रालय संजीव भट्ट को आईपीएस सेवा से बर्खास्त करने का अनुमोदन भी करता है |

बेचारे संजीव भट्ट .. चले थे सिंघम बनने ..चुइंगम बन गये !!

शहीदों का मजहब देखकर यूपी की सपा सरकार मुवावजा तय करती है ... यदि मरने वाला मुस्लिम है तो फिर सारे नियम कायदे कानून से परे बेईतिहा मुवावजा और परिवार के पांच लोगो को सरकारी नौकरी .. और यदि शहीद होने वाला हिन्दू है तो सिर्फ नियमानुसार मिलने वाला विभागीय मुवावजा और एक नौकरी



तारीख 24 जून है और दोपहर के डेढ़ बजे हैं. इलाहाबाद के कालिंदीपुरम इलाके में रहने वाली 36 वर्षीया राजरेखा द्विवेदी वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (एसएसपी) के कमरे में अपने पति की मौत के बाद मिलने वाली विभागीय मदद की जानकारी ले रही हैं. 10 दिन पहले उस वक्त राजरेखा पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा, जब 14 जून को उनके पति और इलाहाबाद के बारा थाना प्रभारी 38 वर्षीय आर.पी. द्विवेदी की दोपहर साढ़े बारह बजे बदमाशों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी. द्विवेदी चोरी की गई इंडिगो कार बरामद करने के लिए बदमाशों का पीछा कर रहे थे. एसएसपी मोहित अग्रवाल एक कागज पर हिसाब लगाकर बताते हैं कि दिवंगत थाना प्रभारी को मिलने वाली सभी सेवा निधियों का कुल जोड़ 25 लाख रु. बैठता है, जिसमें ड्यूटी के दौरान शहीद होने पर सरकार से मिलने वाली विशेष अनुग्रह राशि भी शामिल है.
राजरेखा नौकरी के बारे में पूछती हैं तो एसएसपी जवाब देते हैं कि यह परिवार के किसी एक सदस्य को मिलेगी. राजरेखा ज्यादा पढ़ी-लिखी नहीं हैं. दो बच्चे हैं. बेटा नौवीं क्लास में पढ़ता है और बेटी पांचवीं में. एसएसपी बताते हैं कि सरकारी नियमों के मुताबिक पांच साल बाद बेटे के बड़े हो जाने पर योग्यता के मुताबिक नौकरी दी जाएगी. करीब 15 मिनट बाद राजरेखा बाहर निकल आती हैं, लेकिन उनके चेहरे पर असंतुष्टि का भाव साफ झलक रहा है. राजरेखा तो ज्यादा कुछ नहीं कहतीं, लेकिन उनके साथ आए दिवंगत आर.पी. द्विवेदी के बड़े भाई संजय द्विवेदी कहते हैं, ‘हमें यकीन था कि सरकार परिवार के दो लोगों को नौकरी देने के साथ कम-से-कम 50 लाख रु. की सहायता भी देगी जैसा एक डिप्टी एसपी के मामले में हुआ था.’

संजय अपने भाई की शहादत पर कुछ वैसे ही सम्मान की आस सरकार से लगाए बैठे हैं, जैसा मार्च में प्रतापगढ़ की तहसील कुंडा के बलीपुर गांव में बदमाशों के हाथों मारे गए डिप्टी एसपी जिया उल हक के परिवार को मिला था. इस सनसनीखेज हत्याकांड ने सपा सरकार को इस कदर दबाव में ला दिया कि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने डिप्टी एसपी के परिवार को न सिर्फ 50 लाख रु. मुआवजा दिया, बल्कि दिवंगत जिया की पत्नी परवीन आजाद को लखनऊ पुलिस मुख्यालय में विशेष कार्याधिकारी और छोटे भाई सोहराब अली को गोरखपुर पुलिस महानिरीक्षक कार्यालय में आरक्षी (कल्याण) का पद भी दिया.

हालांकि सरकार ने पहले उनके परिवार से पांच लोगों को नौकरी देने का वादा किया था, लेकिन बाद में सिर्फ दो को ही नौकरी मिली. पति को खोने के सदमे के साथ बीडीएस की आखिरी साल की पढ़ाई और नौकरी के साथ न्याय की जंग लड़ रही परवीन भी तनाव में है. जुलाई में होने वाली परीक्षा और इंटर्नशिप पूरी करने के लिए परवीन ने पुलिस महानिदेशक और मुख्यमंत्री से एक साल के अवकाश के लिए आवेदन किया था, लेकिन उस पर फैसला अभी लंबित है. दिवंगत जिया उल हक के परिवार को देखकर इस बात का सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि घर के एक कमाऊ सदस्य के अचानक न रहने पर किस तरह की मुसीबतें आ खड़ी होती हैं, जिनके आगे फौरी तौर पर सरकारी मदद बौनी साबित होती है.

अगर जिया उल हक के परिवार का यह हाल है तो उन शहीद अधिकारियों और कर्मचारियों के पारिवारिक हालात का अंदाजा लगाया जा सकता है, जिन्हें मामूली मदद से ही संतोष करना पड़ा.

जिया की हत्या के बाद 30 मई को आगरा के ग्राम हथिया में क्राइम ब्रांच के आरक्षी सतीश, 5 जून को सहारनपुर के थाना चिलकाना क्षेत्र में आरक्षी राहुल राठी, 7 जून को बरेली के कैंट थाना क्षेत्र में आरक्षी चालक अनिरुद्ध यादव भी बदमाशों की धरपकड़ के दौरान गोलियों का शिकार हो गए थे. इन शहीद पुलिसकर्मियों के परिवारों के लिए भी अन्य सेवा निधियों के अलावा सरकार की ओर से 10 लाख रु. की ही अनुग्रह राशि मंजूर की गई.

पिछले कुछ दिनों से सरकार के मुआवजा बांटने के तौर-तरीकों पर सवाल उठ रहे हैं. सरकार ने प्रतापगढ़ के बलीपुर गांव के पूर्व प्रधान नन्हे यादव और उनके छोटे भाई सुरेश यादव की हत्या के बाद उनके परिवार को 20-20 लाख रु. मुआवजा दिया, जबकि नन्हे यादव का बेटा योगेंद्र, भाई सुधीर और सुरेश यादव का भाई यादवेंद्र जिया की हत्या के आरोपी हैं.

सवाल मई में पुलिस हिरासत में कथित आतंकी खालिद मुजाहिद की मौत के बाद उसके परिवार को 6 लाख रु. मुआवजा देने पर भी उठ खड़े हुए हैं. हालांकि खालिद के ताऊ जहीर आलम फलाही ने सरकारी मदद लौटा दी. वे कहते हैं, ‘जितना पैसा सरकार दे रही है उससे सात गुना हम लोगों ने खालिद को छुड़ाने के लिए मुकदमेबाजी में खर्च किया है. जिया के कातिलों को भी सरकार ने 40 लाख रु. दिए और हमें छह लाख रु. देकर क्या कहना चाहती है? हम ये पैसा लेकर अपना सिर नहीं झुकाना चाहते.’

हिरासत में खालिद मुजाहिद की मौत से उपजे आक्रोश को थामने के लिए सरकार ने मुआवजे की घोषणा की, लेकिन पिछले दो महीने के दौरान हिरासत में मौत के करीब एक दर्जन मामले सामने आए और इनमें से किसी भी मृतक के परिवार को मुआवजा नहीं दिया गया.

राजनैतिक विश्लेषक इसे सपा की राजनैतिक मजबूरी करार दे रहे हैं. प्रदेश की राजनीति पर नजर रखने वाले मेरठ कॉलेज में अर्थशास्त्र के रीडर डॉ. मनोज सिवाच कहते हैं, ‘सपा को लगता है कि मुसलमान-यादव गठबंधन विधानसभा चुनाव में उनकी जीत का अहम कारण था. ऐसे में पार्टी लोकसभा चुनाव से पहले उन्हें किसी भी तरह नाराज नहीं करना चाहती.’ मुआवजे के इस मनमाने रवैये के विरोध में बीजेपी पूरे प्रदेश में प्रदर्शन कर चुकी है. बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मीकांत वाजपेयी कहते हैं, ‘सपा सरकार मुस्लिम तुष्टीकरण की हदें पार कर चुकी है. एक आतंकी की मौत पर उसके परिवार को मुआवजा देना इसका साफ उदाहरण है. शहीद पुलिस कर्मियों के परिवारों की जितनी मदद की जाए, कम है. लेकिन विशेष जाति के लिए खजाना लुटा देना जातिवाद और संप्रदायवाद को बढ़ावा देना है.’

जौनपुर निवासी 35 वर्षीया सीमा देवी के पति रमेश प्रसाद राजकीय इंटर कॉलेज में अध्यापक थे. 2011 में उनकी मृत्यु के बाद शिक्षा विभाग ने रमेश की पहली पत्नी को अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति दी. सीमा रमेश की दूसरी पत्नी हैं. जिया के परिवार में दो लोगों को नौकरी देने के निर्णय को आधार बनाकर सीमा देवी ने मई में इलाहाबाद हाइकोर्ट में याचिका दायर कर रमेश की दूसरी पत्नी होने के नाते सरकारी नौकरी की मांग की. इस याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति ए.पी. साही ने सरकार से पूछा कि किन प्रावधानों के तहत जिया की पत्नी और भाई को सरकारी नौकरी दी गई है? छह जून को कोर्ट में मौजूद प्रमुख सचिव गृह आर.एम. श्रीवास्तव जिया उल हक के भाई सोहराब अली को नौकरी देने का कोई वाजिब जवाब कोर्ट को न दे सके. अब कोर्ट ने मुख्य सचिव जावेद उस्मानी को पक्षकार बनाते हुए उनसे जवाब मांगा है. आरटीआइ एक्टिविस्ट नूतन ठाकुर ने भी हाइकोर्ट में याचिका दायर कर एक जैसे मामले में अलग सरकारी मदद दिए जाने को कठघरे में खड़ा किया है. नूतन ठाकुर कहती हैं, ‘सरकारी नियमों में शहीद पुलिस कर्मियों को उनके रैंक के आधार पर आर्थिक मदद देने का कोई प्रावधान नहीं है.’
इलाहाबाद की डॉ. मधुलिका पाठक ने भी मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर कुछ सवाल उठाए हैं. उनके पति डॉ. मणि प्रसाद पाठक कानपुर में क्षेत्राधिकारी, कलेक्टरगंज के साथ प्रभारी स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप के रूप में तैनात थे. 13 जून, 2007 को बहेलिया गैंग से मोर्चा लेते हुए वे शहीद हो गए थे. मधुलिका कहती हैं, ‘पुलिस विभाग ने मेरी शैक्षिक योग्यता को दरकिनार करते हुए दारोगा की नौकरी लेने को कहा. अगर सरकार जिया उल हक की पत्नी को पुलिस विभाग में ओएसडी बना सकती है तो उससे कम योग्यता न रखने पर मुझे भी ऐसे ही स्तर की नौकरी मिलनी चाहिए.’
मुआवजा बांटने में सपा सरकार ने जिस तरह से भेदभाव किया है उससे समाज में कुछ जातियों और समुदायों के बीच खिंची लकीर का रंग गहरा हो गया है. तार्किक, सुस्पष्ट और एक समान मुआवजा नीति बनाकर ही सरकार इस लकीर को हल्का कर सकती है. (साथ में कुमार हर्ष)

मुंह देखा मुआवजा
हर मौत बराबर नहीं होती. भारत में मुआवजे को लेकर सरकारी स्तर पर अराजकता इसका प्रमाण है. जब कोई घटना घट जाती है और चारों तरफ शोर मचता है तो प्रशासन मुआवजे की घोषणा कर अपना पिंड छुड़ा लेता है. लेकिन यहां भी दिक्कत यह है कि किसे कितना मुआवजा दिया जाएगा, इसके बारे में राज्य या केंद्र सरकार के पास कोई नीति नहीं है. बल्कि मुआवजों के ट्रेंड को देखें तो कई बार यह लगता है कि मीडिया के शोर और जनता के गुस्से को दबाने के लिए जब जितनी रकम सरकार की समझ में आती है, उतनी रकम तुरंत घोषित कर दी जाती है.

उत्तराखंड की मौजूदा त्रासदी में हजारों लोगों की मौत होने के बावजूद अभी तक यह साफ नहीं है कि मरने वालों को कितना मुआवजा दिया जाएगा. हां, केदारनाथ में 25 जून को वायु सेना के हेलिकॉप्टर दुर्घटना में मारे गए 19 लोगों में से उत्तर प्रदेश निवासी दो सैनिकों अखिलेश कुमार सिंह और सुधाकर यादव को उत्तर प्रदेश सरकार ने 20-20 लाख रु. मुआवजा देने की घोषणा की. लेकिन बाकी सैनिकों को क्या मिलेगा, इसका अभी कुछ पता नहीं है. आदमी की जान तो खैर अनमोल है, लेकिन एक से मामलों में मुआवजे के अलग-अलग पैमाने क्या आदमी-आदमी की मौत में फर्क नहीं करते.

अभी बहुत दिन नहीं हुए जब उत्तर प्रदेश सरकार ने पुलिस हिरासत में बीमारी की वजह से मारे गए आतंकवाद के आरोपी खालिद मुजाहिद के परिवार को 6 लाख रु. मुआवजा देने की घोषणा की. यह घटना 18 मई की है तो इससे महज एक दिन पहले 17 मई को छत्तीसगढ़ सरकार और केंद्र सरकार ने बीजापुर जिले में सीआरपीएफ की गोली से मारे गए 8 आदिवासियों में से प्रत्येक के परिवार को 8-8 लाख रु. देने की घोषणा की. एक दिन के अंतर पर घोषित दो मुआवजे जिंदगी की कीमत लगाने में एक लाख रु. का अंतर कर रहे हैं. 19 मार्च को महाराष्ट्र के रत्नागिरि जिले में बस दुर्घटना में 37 लोगों की मौत के मामले में परिजनों को प्रति व्यक्ति 2 लाख रु. मुआवजा दिया गया. दूसरी तरफ पिछले साल दिसंबर में दिल्ली गैंग रेप का शिकार हुई युवती के परिजनों को कुल मिलाकर 50 लाख रु. से ऊपर का मुआवजा दिया गया और उसके भाई को इंदिरा गांधी राष्ट्रीय उड़ान अकादमी, रायबरेली में दाखिला भी दिया गया. हालांकि बलात्कार के मामले में राष्ट्रीय महिला आयोग ने जो गाइड लाइन तैयार की है, उसके मुताबिक बलात्कार पीड़िता के घर का कमाऊ सदस्य होने की स्थिति में दो लाख रु. और सामान्य सदस्य होने पर एक लाख रु. मुआवजा देने का प्रावधान है. यह जान की एक और अलग कीमत है.

अपने संज्ञान में आने वाली ज्यादातर घटनाओं पर मुआवजे का निर्देश देने वाले राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने भी मुआवजा देने के लिए कोई तय प्रणाली अब तक नहीं बनाई है. ले-देकर अगर कहीं विधिवत मुआवजा प्रणाली है तो वह केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों (सीएपीएफ) के लिए बनार्ई गई है. केंद्रीय गृह राज्यमंत्री आर.पी.एन. सिंह ने इस साल 30 अप्रैल को लोक सभा को बताया कि सीएपीएफ का कोई सदस्य अगर डयूटी के दौरान मारा जाता है तो उसके परिजन को एक मुश्त 15 लाख रु. मुआवजा देने का प्रावधान है. इसके अलावा परिवार को पेंशन भी दी जाएगी. वैसे भी सरकारी विभागों में कर्मचारी के मरने पर अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति की व्यवस्था है.

लेकिन आम नागरिक के बारे में सरकार कोई एक समान व्यवस्था बनाने की पहल करती नहीं दिखती. मीडिया की सुर्खियों से दूर होने वाली दुर्घटना मौत के मामले में मुआवजा तो दूर इस बात तक की व्यवस्था नहीं है कि बीमा दावे के लिए चलने वाली कानूनी कार्यवाही को कितने दिन में पूरा किया जाए. सड़क दुर्घटना के मामलों में मारे गए व्यक्ति का परिवार अकसर सालों साल मुकदमे की झंझट में पड़ा रहता है.

कई मामले ऐसे भी हैं जिनमें राज्य सरकार और केंद्र सरकार दोनों अपने लिहाज से मुआवजे की घोषणा कर देती हैं. इसके साथ ही दबाव देखकर पेट्रोल पंप का लाइसेंस, परिवार के एक या एक से ज्यादा सदस्य को सरकारी नौकरी का वादा भी कर दिया जाता है. इस मुंह देखे सरकारी अंदाज से ऐसा लगता है कि सरकारी आंखों में आम आदमी की जिंदगी की कीमत दबाव के मोलभाव की मोहताज है.

कांग्रेसियो के पिताजी क्वात्रोची के इतिहास पर एक नजर :-



--16 अप्रैल 1987
: स्वीडिश रेडियो ने इस घोटाले का पर्दाफाश किया। घोटाले में मार्टिन आर्दबो, हिंदुजा ब्रदर्स और विन चड्ढा भी आरोपी हैं।

--22 अक्तूबर, 1999: सीबीआई ने क्वात्रोच्चि के खिलाफ स्पेशल कोर्ट में चार्जशीट दाखिल की।

--4 नवंबर, 1999: ट्रायल कोर्ट ने क्वात्रोच्चि के खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी किया।

--20 दिसंबर, 2000: मलयेशिया में क्वात्रोच्चि गिरफ्तार। मलयेशिया की अदालत ने क्वात्रोच्चि को भारत को प्रत्यर्पित करने से इंकार किया, बाद में वहां से रिहा कर दिया गया।

--25 मई, 2001: स्पेशल जज ने क्वात्रोच्चि का मुकदमा बाकी आरोपियों से अलग किया।

--25 मई, 2003: लंदन में क्वात्रोच्चि के दो खातों में 10 लाख यूएस डॉलर और 30 लाख यूरो मिले।

--31 मार्च, 2004: मलयेशिया की अदालत ने क्वात्रोच्चि के प्रत्यर्पण का अनुरोध ठुकराया।

--25 अगस्त, 2005: सीबीआई ने अपनी वेबसाइट पर क्वात्रोच्चि की तस्वीर जारी की।

--22 दिसंबर, 2005: एडिशनल सॉलिसिटर जनरल क्वात्रोच्चि के खाते सील करने पर वार्ता के लिए लंदन में अफसरों से मिले।

--11 जनवरी, 2006
: सीबीआई ने ब्रिटिश अधिकारियों से कहा उसके पास कोई प्रमाण नहीं है, जिसके आधार पर ओतावियो क्वात्रोच्चि के दो बैंक खातों में जमा तीस लाख यूरो और 10 लाख अमेरिकी डॉलर की रकम का संबंध बोफोर्स तोप सौदे की दलाली से साबित करे।

--12 जनवरी, 2006: क्वात्रोच्चि के खातों को क्लीन चिट देने के सरकार के कदम के खिलाफ अधिवक्ता अजय अग्रवाल द्वारा सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई।

--13 जनवरी, 2006: केंद्र सरकार के कदम को चुनौती देने वाली अजय अग्रवाल की याचिका पर शीघ्र सुनवाई करने से सुप्रीम कोर्ट का इंकार। कोर्ट ने इस संबंध में सभी जरूरी प्रक्रियाओं को पूरा करने का निर्देश दिया।

--15 जनवरी, 2006: क्वात्रोच्चि के दोनों खातों पर लगी रोक लंदन हाई कोर्ट ने हटाई। (भारत के सॉलिसिटर जनरल द्वारा ब्रिटेन के क्राउन प्रॉसीक्यूशन को क्वात्रोच्चि के खिलाफ सुबूत नहीं मिलने की जानकारी के बाद यह रोक हटाई।)

गौरतलब है की क्वात्रोची के बैंक खातो पर लगी रोक हटाने के लिए क्वात्रोची ने कोई मेहनत नही किया बल्कि भारत सरकार ने खुद अपने तत्कालीन कानून मंत्री हंसराज भरद्वाज को लन्दन भेज कर ब्रिटिश कोर्ट को बताया की क्वात्रोची एक संत महात्मा है उन्होंने कोई अपराध नही किया है इसलिए भारत सरकार दरखास्त करती है की माननीय क्वात्रोची जी के बैंक खातो पर लगी रोक हटाई जाये |

ये पूरी प्रक्रिया एकदम गुप्त रखी गयी थी ... जैसे ही क्वात्रोची के खातो से रोक हटी उसने एक मिनट के भीतर अपने तीनो बैंक खातो से बीस करोड़ डालर अपने बेटे के खाते में ट्रांसफर कर दिए ... जब भारत की सुप्रीमकोर्ट को पता चला तब उसने भारत सरकार को नोटिस दिया तब भारत सरकार ने कहा की उसके खातो में एक पाई भी नही है ..

बाद में लन्दन के अख़बार मिरर ने खुलासा किया की भारत सरकार के कानूनमंत्री खुद २० दिनों तक लन्दन में रुक क्र क्वात्रोची के खातो से रोक हटवाई थी


--16 जनवरी, 2006: सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और सीबीआई को नोटिस जारी कर क्वात्रोच्चि के खाते से लेन-देन नहीं होने के लिए जरूर कदम उठाने का निर्देश दिया।
सीबीआई मुझसे इटली में पूछताछ करे, गांधी परिवार के खिलाफ अभियान का शिकार हूं: क्वात्रोच्चि (फोन पर एक संवाद एजेंसी से कहा।)

--20 जनवरी, 2006: सरकार द्वारा क्वात्रोच्चि को क्लीन चिट दिये जाने के मामले में एनडीए प्रतिनिधिमंडल राष्ट्रपति अब्दुल कलाम से मिला और एक ज्ञापन सौंपा।

--23 जनवरी, 2006: क्वात्रोच्चि के खातों के तार स्विट्जरलैंड से जुड़े या नहीं इसकी जांच के लिए सीबीआई ने वहां जाने के लिए गृहमंत्रालय से अनुमति देने की गुजारिश की।

--6 फरवरी, 2007: क्वात्रोच्चि को अर्जेंटीना के इगुआजो अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर गिरफ्तार किया गया।

--23 फरवरी, 2007: क्वात्रोच्चि को अर्जेंटीना सरकार ने जमानत दी।

--26 फरवरी, 2007: सीबीआई को जब तक गिरफ्तारी की खबर मिली, अर्जेंटीना सरकार उसे रिहा भी कर चुकी थी।

--8 मार्च, 2007: सीबीआई ने क्वात्रोच्चि मामले में सुप्रीम कोर्ट में सफाई पेश करते हुए कहा कि उस पर लगाए गए आरोप निराधार है और उसने कोर्ट से कोई सूचना नहीं छुपाई थी।
सीबीआई ने कहा कि क्वात्रोच्चि की 23 फरवरी को हुई जमानत के बारे में उसे पहले से कोई जानकारी नहीं थी। ब्यूरो को इस बात की जानकारी 26 फरवरी को मिली थी।

--23 मार्च, 2007: अर्जेंटीना के कोर्ट में क्वात्रोच्चि ने अपने भारत प्रत्यर्पण का पुरजोर विरोध किया।

--13 अप्रैल, 2007: क्वात्रोच्चि के प्रत्यर्पण के मामले में सीबीआई ने स्टेटस रिपोर्ट दाखिल की। रिपोर्ट में सीबीआई ने क्वात्रोच्चि की सही पहचान का दावा किया।

--8 जून, 2007: अदालत ने क्वात्रोच्चि की अर्जेंटीना में गिरफ्तारी से संबंधित मामले में अपना फैसला सुरक्षित रखा।

--9 जून, 2007: अर्जेंटीना की एक अदालत ने क्वात्रोच्चि को भारत प्रत्यर्पित करने के आग्रह को अस्वीकार कर दिया। सीबीआई की क्वात्रोच्चि का भारत लाने की मुहिम को बड़ा झटका लगा।

--12 जून, 2007: क्वात्रोच्चि मामले में सीबीआई को एक और झटका लगा जब अर्जेंटीना की अदालत ने अभियोजन पक्ष को ओतावियो क्वात्राकी को मुकदमे का खर्च अदा करने का आदेश दिया।

--15 अगस्त, 2007: 6 फरवरी को अर्जेंटीना में गिरफ्तार क्वात्रोच्चि इटली रवाना, सीबीआई फिर प्रत्यर्पण कराने में विफल रही।

--18 अगस्त, 2007: क्वात्रोच्चि के प्रत्यर्पण के लिए किए गए सरकार और सीबीआई के प्रयासों से संबंधित सारे दस्तावेज पेश कराने हेतु वकील अजय अग्रवाल ने सुप्रीम कोर्ट में एक अर्जी दायर किया।

--3 नवंबर, 2007: अधिवक्ता अजय अग्रवाल द्वारा दायर अवमानना याचिका पर सुनवाई के दौरान अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल गोपाल सुब्रमण्यम ने कोर्ट में कहा कि जब भी कोर्ट क्वात्राकी के बारे में आदेश देता है, हमें विदेशी अदालतों में मुंह की खानी पड़ती है। ऐसी स्थिति में बेहतर होगा कि कोर्ट कोई आदेश न दे क्योंकि उनका पालन करवाना असंभव है।

--28 अप्रैल, 2009: क्वात्रोच्चि का नाम वांछित लोगों की सीबीआई की सूची से हटाया गया। इसके साथ ही सीबीआई के अनुरोध के बाद इंटरपोल ने क्वात्रोच्चि का नाम रेड कॉर्नर नोटिस से हटा दिया।

--26 अगस्त, 2010: सीबीआई ने सीएमएम कोर्ट में अर्जी देकर कहा था कि क्वात्रोच्चि के खिलाफ कोई भी सबूत मौजूद नहीं हैं। लिहाजा उनके खिलाफ चल रहे मामले की सुनवाई बंद कर देनी चाहिए। अदालत ने अर्जी पर सुनवाई के लिए 28 अगस्त की तारीख तय की है। जबकि तीस हजारी अदालत स्थित मुख्य मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट कावेरी बावेजा की अदालत में अधिवक्ता अजय अग्रवाल ने एक बार फिर से अर्जी देकर कहा है कि मामला बंद नहीं करना चाहिए।

--4 जनवरी, 2011: बोफोर्स दलाली मामले में इटली के व्यापारी ओतावियो क्वात्रोच्चि के खिलाफ मामला बंद करने के लिए दबाव बनाते हुए सीबीआई ने दिल्ली की एक अदालत में कहा कि इनकम टैक्स अपीली ट्रिब्युनल के आदेश में कुछ भी नया नहीं है। तीस हजारी कोर्ट के मुख्य मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट विनोद यादव की अदालत में सीबीआई की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल पीपी मल्होत्रा ने कहा कि मामले में केस बंद करने के अलावा दूसरा विकल्प नहीं है।

क्या कभी इन नीच नकली गांधियो ने ये खुलासा किया है की इन्हें क्या उपहार मिले ?? और वो कहाँ गये ?? 2012-13 में मोदी जी को कुल 8040 गिफ्ट मिले ..जिनकी नीलामी २९ से ३१ जुलाई तक होगी .. इन पैसो को हर बार की तरह कन्या केलवनी और शिक्षा ट्रस्ट को दान कर दिया जायेगा |


मोदी जी हर साल जुलाई में अपने मिले उपहारों की नीलामी करवाते है और उन पैसो को कन्या शिक्षा पर खर्च किया जाता है |
इस बार नीलामी अहमदाबाद, सुरत, भरूच, भावनगर, बड़ोदरा, दाहोद राजकोट के कलेक्टर ऑफिस में होगा .. और इस साल मोदी जी को सोने की तलवार, हीरे लगे पेपरवेट सहित जापान में कई महंगे गजैट भी गिफ्ट में मिले है ... इजरायल के राजदूत ने मोदी जी को सोने की पेन दी है तो कतर के सम्राट में मोदी जी को सोने की तलवार दी है |

साथ ही मोदी जी को ढेर सारी पगड़िया, कुर्ते, फोटो, पेन्टिग आदि भी मिले है ..

ये राजबब्बर जो आज कांग्रेसी बनकर गाँधी खानदान के तलवे चाट रहा है... एक जमाने में जब ये सपा में था तब इसी कांग्रेस को जी भरकर कोसा करता था ... कांग्रेस को नीच, भ्रष्ट, चमचो की जमात, भ्रष्टाचार की गंगोत्री कहा करता था





 आगरा में एक सभा में इसने कहा था की किसी भी कांग्रेसी का पैजामा खोलकर देख लीजिये.. आपको एक दूम जरुर दिखेगी जो कांग्रेसी होने का प्राकृतिक पहचान है क्योकि बिना दूम हिलाए कोई कांग्रेसी नही हो सकता 

फिर जब मुलायम ने इसे लातमारकर भगाया तो ये कुछ दिनों तक वीपी सिंह के साथ रहा .. और उस वक्त एक पत्रकार ने इससे सवाल पूछा था की वीपी सिंह की तबियत तो खराब रहती है फिर आप अपने भविष्य के लिए किस पार्टी में जायेंगे .. तो इस दोगले ने जबाब दिया था की मै कांग्रेस छोड़कर किसी अन्य पार्टी में जाना या फिर राजनीती से सन्यास लेकर वापस फ़िल्मी दुनिया में जाना पसंद करूंगा क्योकि मै सच्चा लोहियावादी हूँ और मैं अपने जीवन में यदि किसी के विचारो को आत्मसात किया है तो वो है लोकनायक जय प्रकाश नारायण ..जो अधिनायकवाद के खिलाफ थे और कांग्रेस में तो सिर्फ अधिनायकवाद है एक ही खानदान १०० सालो से इस पार्टी को चला रहा है और मेरे जैसा स्वाभिमानी इन्सान कभी कांग्रेस में शामिल होना तो दूर शामिल होने की सोच नही नही सकता |

और मित्रो, आज देखिये ... ये दोगला राजबब्बर उसी कांग्रेस का प्रवक्ता बना है जिस कांग्रेस को इसने पूरी जिन्दगी गाली दी ... और तो और खुद नीच नकली गांधियो को भी शर्म नही आई की जिस व्यक्ति ने पूरी जिन्दगी इन्हें गाली दिया ये उसी को थूककर चाट रहे है |

इतिहास गवाह है की भारत के सभी आतंकवादी संगठनो, अलगाववादी संगठनो और गुंडो को कांग्रेस ने ही पैदा किया , फिर उनका जमकर इस्तेमाल किया और मतलब निकल जाने पर बाद मे मारवा दिया....या फिर जेल में डाल दिया या फिर एकदम हाशिये पर धकेल दिया ...



शरद पवार जब कांग्रेस में हुआ करते थे और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री थे तब उन्होंने दाउद को अपना दांया हाथ बना रखा था ..दाउद के गुंडे पुरे मुंबई और पश्चिम भारत में वसूली से लेकर स्मगलिंग करते थे ..फिर मतलब निकल जाने के बाद दाऊद को लात मार दिया |

जो भिंडरावलां कभी इंदिरा गाँधी का सबसे प्यारा था क्योकि इंदिरा को लगा की पंजाब में अकालियो की ताकत को भिंडरावाला ही खत्म कर सकता है .. इंदिरा ने खालिस्तानी अलगाववादीयो को खूब बढ़ावा दिया ...फिर जब भिंडरावाला कांग्रेस पर बोझ और नासूर  बन गया तो उसे मरवा दिया |

ठीक यही हाल जेकेएलएफ के साथ हुआ ..इंदिरा गाँधी कश्मीर की सत्ता के लिए जेकेएलएफ का समर्थन करती थी ..इंदिरा को कश्मीर में नेशनल कान्फ्रेंस को कमजोर करने के लिए कोई मोहरा चाहिए था ..फिर इंदिरा ने मकबूल बट्ट और हाशिम कुरैशी को कश्मीर को अशांत करने की सुपारी दी ताकि फारुख अब्दुला की सरकार को बर्खास्त करने का बहाना मिल सके | और इन दोनों ने जेकेएलएफ [जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट] बनाया लेकिन जब जेकेएलएफ वालो ने पुरे कश्मीर ही नही बल्कि पुरे देश को हिला दिया एयर इंडिया के एक और इंडियन एयरलाइंस के एक प्लेन का अपहरण किया और बाद में लन्दन में भारत के उचायुक्त रविन्द्र म्हात्रे की हत्या की और जब पुरे देश में इंदिरा की थू थू होने लगी तब इंदिरा ने जेकेएलएफ के सह-संस्थापक मकबूल बट्ट को गिरफ्तार करके फांसी पर लटका दिया |

ठीक यही काम कांग्रेस ने लिट्टे के साथ किया ..इंदिरा ने और बाद में राजीव ने लिट्टे को खूब बढ़ावा दिया ..फिर राजीव के मन में अमेरिका की तरह लोकल दादा बनने की चूल मची और लिट्टे के ही खिलाफ भारतीय सेना भेज दी ..जिसका खामियाजा राजीव गाँधी को बाद में भुगतना पड़ा था |
ठीक यही निति कांग्रेस ने पूर्वोत्तर के राज्यों में भी अपनाई .. असम गण परिषद को खत्म करने के लिए उल्फा बनाया और बंगलादेशी मुसलमानों को आसाम में बसने की इजाजत दी .. नागालैंड में टी मुइवा और आइजक को पहले खूब बढ़ावा दिया फिर बातचीत करने के बहाने बैंकाक से बुलाकर दिल्ली हवाईअड्डे पर ही गिरफ्तार कर लिया | तबसे लेकर आजतक नागालैंड सुलग रहा है |

 ओवसी, सज्जन कुमार, जगदीश टाइटलर सब इसके उदाहरण है... जब राजीव को अपनी माँ की हत्या का बदला लेना था तब एच.के.एल भगत, सज्जन कुमार, जगदीश टाईटलर सरीखे प्यादों को इस्तेमाल करके सिखो का कांग्रेस ने खूब कत्लेआम करवाया ..उनके सम्पत्तियो को आग के हवाले करवा दिया | खुद राजीव गाँधी ने सिख्ख विरोधी दंगो का समर्थन करके हुए दूरदर्शन पर कहा था की जब भी जंगल में कोई बड़ा पेड़ गिरता है तो आसपास की जमीन हिल जाती है ..राजीव गाँधी का खुलेआम इशारा पाकर कांग्रेसी और भी ताकत से सिक्खों को खत्म करने में लग गये थे | 

फिर जब मतलब निकल गया तो इन हत्यारों को दूध में पड़ी मख्खी की तरह निकाल फेका .. 

ठीक यही शकील अहमद के मुंह से भी सत्य निकला कि इंडियन मुजाहिद्दीन का गठन गुजरात दंगो का बदला लेने के किये हुआ है ..लेकिन शकील के आधासत्य की कहा है ..सच्चाई ये है की इन्डियन मुजाहिदीन को भी कांग्रेस ने ही शकील और दुसरे कांग्रेसी मुस्लिम नेताओ के ईशारे पर पैदा किया है

***********जितेन्द्र प्रताप सिंह*******

Wednesday 29 May 2013

आखिर तहसीन पूनावाला का एनडीटीवी गलत परिचय क्यों देता है ??? इसे एनडीटीवी एक सामाजिक कार्यकर्ता और बिजनसमैंन बताता है ... जबकि ये कांग्रेस का सबसे बड़ा फंड मैनेजर , यूपी चुनाव में कांग्रेस का सबसे बड़ा फाइनेंसर , कांग्रेस के आईटी सेल का इंजार्ज और कॉमनवेल्थ घोटाले में सीबीआई के द्वारा चार्जशीटेड मुजरिम है




कल एनडीटीवी पर इस कांग्रेसी दलाल तहसीन पूनावाला की कीर्ति आज़ाद ने जमकर धुलाई की और कहा की मियां पहले तमीज और तहजीब सिखों .....

असल में ये तहसीन पूनावाला सुरेश कलमाड़ी के मित्र और पूना कांग्रेस के पदाधिकारी शहजाद पूनावाला का बेटा है ... ये तहसीन पूनावाला उन १९ लोगो में से एक है जिसके खिलाफ सीबीआई ने कोम्न्वेल्थ फंड में घोटाले को लेकर चार्जशीट दायर किया हुआ है ....

आप ये लिंक देखिये ...
http://post.jagran.com/Poonawala-brothers-of-Kalmadi-team-controls-Congress-Mission-UP-1328590508

ये पूनावाला अरब देशो के मुस्लिमो में बहुत पैठ रखता है और राहुल गाँधी के टीम का कोर मेम्बर है और इसने ही कांग्रेस के यूपी बिधानसभा चुनाव का पूरा फंड एरेंज किया था ... इसकी पहुंच का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते है की कोमनवेल्थ घोटाले में सुरेश कलमाड़ी और ललित भनोट जैसे दिग्गज जेल गये लेकिन ये अपने राहुल गाँधी के रिश्ते को लेकर चार्जशीटेट होने के बाद भी जेल नही गया ...

आप इसी बात से इसके ताकत का अंदाजा लगा सकते है की इसके ट्विटर और फेसबुक एकाउंट पर जो फोटो है उसे देखकर आप सोच सकते है की आखिर सीबीआई के लिस्ट में वांटेड और चार्जशितेट मुजरिम होने के बाद भी ये एनडीटीवी पर एक सामाजिक कार्यकर्ता बनकर बहस में भाग लेता है .... ये राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, राहुल गाँधी और सभी केन्द्रीय मंत्रीयो के साथ है ...

इसके फेसबुक एकाउंट का लिंक 
https://www.facebook.com/tehseenp

असल में कांग्रेस ने इसे आईटी सेल की पुरे भारत का प्रमुख बनाया हुआ है और ये कांग्रेस का सबसे बड़ा फंडमैनेजर है क्योकि खाड़ी के देशो के ये अरबो रूपये कांग्रेस को दिलाता है ... गुजरात विधानसभा चुनावो के समय ये कांग्रेस के कार्यालय राजीव गाँधी भवन में ही बैठता था और पूरा फंड की जिम्मेदारी इसकी ही थी ...

आखिर एनडीटीवी इसका परिचय देते समय लोगो को ये क्यों नही बताता की ये कामनवेल्थ गेम में सीबीआई के द्वारा चार्जशीटेड है ??

Tuesday 16 April 2013

गुजरात दंगे का सच आज जहा देखो वहा गुजरात के दंगो के बारे में ही सुनने और देखने को मिलता है फिर चाहे वो गूगल हो या फेसबुक हो या फिर टीवी चैनेल | रोज रोज नए खुलाशे हो रहे हैं | रोज गुजरात की सरकार को कटघरे में खड़ा किया जाता है| सबका निशाना केवल एक नरेन्द्र मोदी | जिसे देखो वो अपने को को जज दिखाता है| हर कोई सेकुलर के नाम पर एक ही स्वर में गुजरात दंगो की भर्त्सना करते हैं |










कारसेवको को मारने के लिए ट्रेन को जलाने की कई दिनों से योजना बन रही थी-

साबरमती ट्रेन हादसे में मौत की सजा प्राप्त अब्दुल रजाक कुरकुर के अमन गेस्टहाउस पर ही कारसेवको को जिन्दा जलाने की कई हप्तो से योजना बनी थी ... इसके गेस्टहाउस से कई पीपे पेट्रोल बरामद हुए थे |
पेट्रोल पम्प के कर्मचारीयो ने भी कई मुसलमानों को महीने से पीपे में पेट्रोल खरीदने की बात कही थी और उन्हें पहचान परेड में पहचाना भी था .. पेट्रोल को सिगनल फालिया के पास और अमन गेस्टहाउस में जमा किया जाता था |

गोधरा से तत्कालीन सहायक स्टेशन मास्टर के द्वारा वडोदरा मंडल ट्रेफिक कंट्रोलर को भेजी गयी गुप्त रिपोर्ट ::- 

गोधरा के तत्कालीन सहायक स्टेशन मास्टर राजेन्द्र मीणा ने वडोदरा मंडल के ट्रेफिक कंट्रोलर को आरपीएफ के गुप्तचर शाखा के जानकारी के आधार पर एक रिपोर्ट भेजी थी जिसमे उन्होंने कहा था की गोधरा आउटर पर किसी भी सवारी ट्रेन को रोकना और खासकर अयोध्या जाने वाली या आने वाली साबरमती एक्सप्रेस को रोकना बहुत खतरनाक होगा क्योकि कुछ संदिग्ध लोग कारसेवको को नुकसान पहुचाने की योजना बना रहे है उन्होंने लिखा था की ट्राफिक को इस तरह से कंट्रोल किया जाए की साबरमती ट्रेन को आउटर पर रुकना न पड़े

गौरतलब है की जिस जगह यानी सिगनल फलिया  पर साबरमती ट्रेन को जलाया गया था ठीक उसी जगह पर 28 November 1990 को पांच हिन्दू टीचरों को जलाकर मारा गया था जिसमे दो महिला टीचर थी ..इस केस में भी बीस मुसलमानों को आरोपी पाया गया था 

आखिर ट्रेन हादसे के दो दिनों के बाद गुजरात में दंगे क्यों भडके ?

मित्रो कभी आपने सोचा है कि जब ट्रेन 27 फरवरी को जलाई गयी तो गुजरात में पहली हिंसा दो दिन के बाद यानी १ मार्च  को क्यों हुई ?

मित्रो साबरमती हादसे की किसी भी मुस्लिम सन्गठन ने निंदा नही की .. उलटे जमायत ये इस्लामी हिन्द के तत्कालीन प्रमुख ने इसके लिए कारसेवको को ही जिम्मेदार ठहरा दिया .. शबाना आजमी ने भी कहा की कारसेवको को उनके किये की सजा मिली है ..आखिर क्या जरूरत थी अयोध्या जाने की ...तीस्ता जावेद सेतलवाड और मल्लिका साराभाई और शबनम हाश्मी ने एक संयुक्त प्रेस कांफेरेस के कहा की हमे ये नही भूलना चाहिए की वो कार सेवक किसी नेक मकसद के नही गये थे बल्कि विवादित जगह पर मन्दिर बनाने गये थे |
मशहूर पत्रकार वीर संघवी ने भी इंडियनएक्सप्रेस में एक आर्टिकल लिखा था ""they condemn the crime, but blame the victims" उन्होंने लिखा था की ऐसे बयानों ने हिन्दुओ को झकझोर दिया था |

जब भी मीडिया गुजरात दंगो की बात करता है तब वो दंगे भडकने के पहले और गोधरा ट्रेन हादसे के बाद 27 February 2002 को गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री और बड़े कांग्रेसी नेता अमरसिंह चौधरी का टीवी पर आकर दिया गया बयान क्यों नही दिखाता ?
मित्रो, अमरसिंह चौधरी ने साबरमती ट्रेन हादसे की निंदा नही की बल्कि उलटे वो कारसेवको को कोसने लगे और मृत कारसेवको के बारे में अनाप सनाप बकने लगे .. और कहा की ये लोग खुद अपनी मौत के जिम्मेदार है ..

इन सब बातो ने गुजरात की जनता को भडकाने का काम लिया ..

अब सवाल उठता है की गुजरात दंगा हुआ क्यों ? 27 फरवरी 2002 साबरमती ट्रेन के बोगियों को जलाया गया गोधरा रेलवे स्टेशन से करीब ८२६ मीटर की दुरी पर स्थित जगह सिगनल फालिया पर  | इस ट्रेन में जलने से 58 लोगो को मौत हुई | 25 औरते और 19 बच्चे  भी मारे गये |
प्रथम दृष्टया रहे वहा के 14 पुलिस के जवान जो उस समय स्टेशन पर मौजूद थे और उनमे से ३ पुलिस वाले घटना स्थल पर पहुचे और साथ ही पहुचे अग्नि शमन दल के एक जवान सुरेशगिरी गोसाई जी | अगर हम इन चारो लोगो की माने तो म्युनिसिपल काउंसिलर हाजी बिलाल भीड़ को आदेश दे रहे थे ट्रेन के इंजन को जलने का| साथ ही साथ जब ये जवान आग बुझाने की कोशिस कर रहे थे तब ट्रेन पर पत्थरबाजी चालू कर दी गई भीड़ के द्वारा| अब इसके आगे बढ़ कर देखे तो जब गोधरा पुलिस स्टेशन की टीम पहुची तब २ लोग १०,००० की भीड़ को उकसा रहे थे ये थे म्युनिसिपल प्रेसिडेंट मोहम्मद कलोटा और म्युनिसिपल काउंसिलर हाजी बिलाल|

अब सवाल उठता है की मोहम्मद कलोटा और हाजी बिलाल को किसने उकसाया और ये ट्रेन को जलाने क्यों गए?



असल में गोधरा की मुख्य  मस्जिद का मौलाना मौलवी हाजी उमर जी ही इस कांड का मुख्य आरोपी पाया गया और उसे अदालत ने फांसी की सजा दी ..जिसे बाद में आजीवन कारावास में तब्दील किया गया | दुसरे आरोपीयो ने विभिन्न जाँच एजेंसियों और कोर्ट में बताया की मौलाना उमरजी कई हप्तो से मस्जिद में नमाज के बाद भडकाऊ तकरीर देता था और कहता था की हमे बदला लेना है ..इन कारसेवको  ने बाबरी मस्जिद तोड़ी है इसलिए हर मुसलमान का फर्ज है की वो बदला ले |

सवालो के बाढ़ यही नहीं रुकते हैं बल्कि सवालो की लिस्ट अभी लम्बी है|

अब सवाल उठता है की क्यों मारा गया ऐसे राम भक्तो को| कुछ मीडिया ने बताया की ये मुसलमानों को उकसाने वाले नारे लगा रहे....अब क्या कोई बताएगा की क्या भगवान राम के भजन मुसलमानों को उकसाने वाले लगते हैं?

लेकिन इसके पहले भी एक हादसा हुआ २७ फ़रवरी २००२ को सुबह ७:४३ मिनट ४ घंटे की देरी से जैसे ही साबरमती ट्रेन चली और प्लेटफ़ॉर्म छोड़ा तो प्लेटफ़ॉर्म से १०० मीटर की दुरी पर ही १००० लोगो की भीड़ ने ट्रेन पर पत्थर चलाने चालू कर दिए पर यहाँ रेलवे की पुलिस ने भीड़ को तितर बितर कर दिया और ट्रेन को आगे के लिए रवाना कर दिया| पर जैसे ही ट्रेन मुस्किल से ८०० मीटर चली अलग अलग बोगियों से कई बार चेन खिंची गई | 

बाकि की कहानी जिसपर बीती उसकी जुबानी | उस समय मुस्किल से १५-१६ साल की बच्ची की जुबानी |
ये बच्ची थी कक्षा ११ में पढने वाली गायत्री पंचाल जो की उस समय अपने परिवार के साथ अयोध्या से लौट रही थी की माने तो ट्रेन में राम धुन चल रहा था और ट्रेन जैसे ही गोधरा से आगे बढ़ी एक दम से रोक दिया गई चेन खिंच कर | उसके बाद देखने में आया की एक भीड़ हथियारों से लैस हो कर ट्रेन की तरफ बढ़ रही है | हथियार भी कैसे लाठी डंडा नहीं बल्कि तलवार, गुप्ती, भाले, पेट्रोल बम्ब, एसिड बल्ब्स और पता नहीं क्या क्या | भीड़ को देख कर ट्रेन में सवार यात्रियों ने खिड़की और दरवाजे बंद कर लिए पर भीड़ में से जो अन्दर घुस आए थे वो कार सेवको को मार रहे थे और उनके सामानों को लूट रहे थे और साथ ही बहार खड़ी  भीड़ मरो-काटो के नारे लगा रही थी | एक लाउड स्पीकर जो की पास के मस्जिद पर था उससे बार बार ये आदेश दिया जा रहा था की "मारो, काटो. लादेन ना दुश्मनों ने मारो" | साथ ही बहार खड़ी भीड़ ने पेट्रोल डाल कर आग लगाना चालू कर दिया जिससे कोई जिन्दा ना बचे| ट्रेन की बोगी में चारो तरफ पेट्रोल भरा हुआ था| दरवाजे बहार से बंद कर दिए गए थे ताकि कोई बहार ना निकल सके| एस-६ और एस-७ के वैक्यूम पाइप कट दिया गया था ताकि ट्रेन आगे बढ़ ही नहीं सके| जो लोग जलती ट्रेन से बहार निकल पाए कैसे भी उन्हें काट दिया गया तेज हथियारों से कुछ वही गहरे घाव की वजह से मारे गए और कुछ बुरी तरह घायल हो गए|



गोधरा फायर सर्विस के जवानो का बयान 

 नानावती औरशाह आयोग को दिए अपने बयानों में फायर बिग्रेड के लोगो ने कहा की जबहमे सुचनामिली की ट्रेन जलाई गयी है तो हम तुरंत पहुचे लेकिन सिग्लन फालिया के पास  कई मुस्लिम महिलाये और बच्चे हमारा सामने लेट गये ..और कई लोग चिल्ला रहे थे की इनको तब तक मत जाने देना जबतक की ट्रेन पूरी तरह जल न जाये |
 हिन्दू सड़क पर उतारे १ मार्च 2002 के दोपहर से | पूरा दो दिन हिन्दू शांति से घरो में बैठा रहा| अगर वो दंगा हिंदुवो या मोदी को  करना था तो 27 फ़रवरी 2002 की सुबह 8 बजे से क्यों नहीं चालू हुआ? जबकि मोदी ने 28 फ़रवरी 2002 की शाम को ही आर्मी को सडको पर लाने का आदेश दिया जो की अगले ही दिन १ मार्च २००२ को हो गया और सडको पर आर्मी उतर आयी गुजरात को जलने से बचाने के लिए | पर भीड़ के आगे आर्मी भी कम पड़ रही थी तो १ मार्च २००२ को ही मोदी ने अपने पडोसी राज्यों से सुरक्षा कर्मियों की मांग करी| ये पडोसी राज्य थे महाराष्ट्र (कांग्रेस शासित- विलाश राव देशमुख मुख्य मंत्री), मध्य प्रदेश (कांग्रेस शासित- दिग विजय सिंह मुख्य मंत्री), राजस्थान (कांग्रेस शासित- अशोक गहलोत मुख्य मंत्री) और पंजाब (कांग्रेस शासित- अमरिंदर सिंह मुख्य मंत्री) | क्या कभी किसी ने भी इन माननीय मुख्यमंत्रियों से एक बार भी पुछा की अपने सुरक्षा कर्मी क्यों नहीं भेजे गुजरात में जबकि गुजरात ने आपसे सहायता मांगी थी | या ये एक सोची समझी गूढ़ राजनीती द्वेष का परिचायक था इन प्रदेशो के मुख्यमंत्रियों का गुजरात को सुरक्षा कर्मियों का ना भेजना|

साबरमती ट्रेन हादसा और लालूप्रसाद यादव की घटिया राजनीती जो बाद में गलत साबित हुई 
साबरमती ट्रेन हादसे के ढाई साल के बाद जब घटिया और नीच सोच रखने वाले लालूप्रसाद यादव रेलमंत्री बने तो उन्होंने इस हादसे पर अपनी नीच और गिरी हुई राजनितिक रोटी सेकने के लिए रेलवे के द्वारा बनर्जी आयोग बनाया .. और इस आयोग को पहले ही बता दिया गया था की आपको क्या रिपोर्ट देनी है | असल में कुछ महीनों के बाद बिहार विधानसभा के चुनाव होने वाले थे और लालूप्रसाद यादव चाहते थे की किसी भी हिंदूवादी दल को इसका फायदा न मिले बल्कि हिंदूवादी संघटनों को और कारसेवको को ही दोषी ठहरा दिया जाये |

सोचिये जो बोगी ढाई सालो तक खुले आसमान के पड़ी रही उस बोगी की जाँच करके बनर्जी आयोग ने कहा की ट्रेन अंदर से जलाई गयी थी .. मतलब वो कहना चाह रहे थे की सभी कारसेवको को सामूहिक आत्मदाह करने की इच्छा हो गयी इसलिए उन्होंने खुद ही ट्रेन में आग लगा ली और किसी ने भी बाहर निकलने की कोशिस नही की |  मजे की बात देखिये की जस्टिस बनर्जी ने जनवरी २००५ को यानी बिहार चुनाव घोषित होने के ठीक दो दिन पहले अपना विवादास्पद रिपोर्ट सार्वजनिक किये ताकि इस रिपोर्ट के आधार पर लालूप्रसाद यादव बिहार के मुसलमानों को भड़काकर उनका वोट हासिल कर सके |

लेकिन गोधरा ट्रेन हादसे में जख्मी हुए नीलकंठ तुलसीदास भाटिया नामक एक शक्स ने बनर्जी आयोग के झूठे रिपोर्ट को गुजरात हाईकोर्ट में चेलेंज किया | गुजरात हाईकोर्ट ने विश्व के जानेमाने फायर विशेषज्ञ और फोरेंसिक एक्पर्ट का एक पैनेल बनाया . और जस्टिस उमेश चन्द्र बनर्जी को इस पैनेल के सामने पेश होने का सम्मन दिया ... तीन सम्मनो के बाद पेश हुए बनर्जी साहब ने ये नही बता पाया की आखिर उन्होंने ये कैसे निष्कर्ष निकला की ट्रेन में आग भीतर से लगी है .. जबकि आग के पैटर्न और सभी गवाहों और खुद अभियुक्तों के बयानों पे अनुसार आग बाहर से लगाई गयी थी और दरवाजो को बाहर से बंद कर दिया गया था ..जस्टिस बनर्जी कोई जबाब नही दिए और कोर्ट में कहा की वो एक आयोग के मुखिया होने के नाते किसी भी सवाल का जबाब देने के लिए बाध्य नही है .. मेरा काम था रेलवे को रिपोर्ट देना इसे सही या गलत मानना तो रेलवे का काम है |

यानी ये पूरी तरह साबित हो गया था की लालूप्रसाद यादव में जस्टिस उमेशचन्द्र बनर्जी आयोग का गठन सिर्फ अपने राजनीतक रोटिया सेकने के लिए ही किया था | इस आयोग को लालू ने पहले ही बता दिया था की मुझे किस तरह की जाँच रिपोर्ट चाहिए |

फिर ओक्टूबर २००६ के गुजरात हाईकोर्ट की चार जजों की बेंच ने जिसमे सभी जज एक राय पर सहमत थे उन्होंने लालू के बनर्जी आयोग की रिपोर्ट को ख़ारिज कर दिया और टिप्पड़ी करते हुए कहा की कोई रिटायर जज किसी नेता के हाथ की कटपुतली न बने ..गुजरात हाईकोर्ट ने बनर्जी रिपोर्ट को रद्दी, बकवास कहा .. अपनी टिप्पड़ी में गुजरात हाईकोर्ट ने कहा
 "Gujarat High Court quashed the conclusions of the Banerjee Committee and ruled that the panel was "unconstitutional, illegal and null and void", and declared its formation as a "colourable exercise of power with mala fide intentions", and its argument of accidental fire "opposed to the prima facie accepted facts on record."


लेकिन ताज्ज्जुब हैकी मीडिया और दोगले सेकुलर लोग सिर्फ एक तरफी बाते ही चलाते है

Sunday 14 April 2013

आज एनडीटीवी पर रवीश कुमार के साथ हमलोग प्रोग्राम देखा "आखिर कब कटेगी चौरासी [84] मित्रो, दिल भर आया .. क्या सारी मीडिया, सारा न्यायतन्त्र, सारे एनजीओ, सारे नेता सारे मानवाधिकारवादी दोगले, सिर्फ गुजरात दंगे पीडितो को ही न्याय दिलाने के लिए अपनी छाती कूटेंगे ? कुछ तो सोचो मेरे हिन्दू मित्रो...आखिर कब तक सेकुलरवाद की घुट्टी पीकर गहरी नींद में सोते रहोगे ?





गुजरात दंगो के लिए सिर्फ दस साल के भीतर तीन तीन एसआईटी और पांच पांच आयोग और आठ विशेष अदालते बनाकर कुल २३० लोगो को सजा भी सुना दी गयी ..और सजा भी ऐसी की सिर्फ मोबाइल फोन के लोकेशन के आधार पर .. क्योकि मरने वाले मुस्लिम थे

और वही दूसरी तरह आज 29 साल बीतने के वावजूद भी दिल्ली के सीख विरोधी दंगो में सिर्फ एक आदमी को सजा हुई .. त्रिलोकचंद को .. उसे आठ केसों में हर केस में फांसी की सजा सुनाई गयी ..लेकिन कांग्रेस को ये डर सताने लगा की अगर त्रिलोकचंद अपना मुंह खोलेगा तो फिर बड़े बड़े लोग नप जायेंगे इसलिए दिल्ली की शीला सरकार ने राष्ट्रपति से अनुरोध करके उसकी सजा को उम्र कैद में तब्दील करवा दिया .. फिर जब त्रिलोकचंद ने अपना मुंह खोलने की धमकी दी तो दिल्ली की शीला सरकार ने राज्यपाल को एक अनुरोध भेजा की चूँकि त्रिलोकचंद का जेल में चालचलन बहुत अच्छा है इसलिए उसे माफ़ी देते हुए रिहा कर दिया जाये |

मित्रो सोचिये दोगली कांग्रेस दोगले लोगो को ही राज्यपाल बनाती है ..जिस राज्यपालों के दफ्तर में कई कई महीनों तक फ़ाइले धुल खाती है उसी राज्यपाल ने सिर्फ एक दिन के भीतर त्रिलोकचंद को माफ़ी देते हुए रिहा करने का आदेश दे दिया .. लेकिन जब हल्ला मचा तब जाकर अपने आदत के अनुसार कांग्रेस ने थूककर चाटते हुए अपना फैसला बदल लिया |

लेकिन दिल्ली की शीला सरकार मानवता के आधार पर समाजकल्याण फंड से 62 सिखों की हत्या में गुनाह साबित होने पर सजा पाए त्रिलोकचंद के परिवार को हर महीने तीस हजार रूपये देती है और उसके दोनों बच्चो की मुफ्त में पढाई भी हुई | सिर्फ इसलिए की त्रिलोकचंद अपना मुंह न खोले |

मित्रो, गुजरात दंगो पर जो अख़बार सबसे ज्यादा हल्ला मचाया है और आज भी मचाता है वो है टाइम्स ऑफ़ इंडिया .. विदेश की कम्पनी बोनेट एंड कोलमेन द्वारा संचालित ये अख़बार दिल्ली के दंगो के समय एक सम्पादकीय लिखा था ..जिसमे लिखा की "हिन्दुओ का गुस्सा आखिर कब तक भीतर उबाल मारेगा ? सिख कौम भारत की है ही नहीं बल्कि ये पाकिस्तान से आई है और दिल्ली पर हावी होती जा रही है ..इनका अक्ल ठिकाने लगाना जरूरी था"

कांग्रेसी सांसद के के बिरला का अख़बार हिंदुस्तान टाइम्स ने भी अपने सम्पादकीय मे लिखा था कि "पाकिस्तान से आये सीख लोग भारत के हिन्दुओ से उनका हक छिनकर पूंजीपति हो गये है इस दंगे ने अब बराबर कर किया है जिसका हक था उसने अपना हक वापस ले लिया तो क्या गुनाह किया"

मित्रो, सोचिये ये सभी बाते कभी मीडिया में नही आई ये तो आज रवीश कुमार के प्रोग्राम में चितम्बरम को जूतियाने वाले पत्रकार और लेखक जनरैल सिंह और दंगो के दो पीड़ित और चश्मदीद गवाह भी थे तब ये बाते आज लोगो को पता चली |

वाह रे नीच और दोगली मीडिया .. आज तक गुजरात दंगे की उस महिला को सामने नही ला पाई जिसका पेट चीरकर बच्चे को बाहर निकला गया था क्योकि ये झूठी बात फैलाई गयी .. खुद दो दो आयोगों ने कहा है की ये बात कुछ लोगो के द्वारा सिर्फ सनसनी फ़ैलाने के लिए फैलाई गयी ..
लेकिन आज तक किसी भी मीडिया ने कांगेस विशेषकर राजीव गाँधी द्वारा प्रायोजित सीख विरोधी दंगो पर इन्वेस्टिगेटिव स्टोरी नही बनाई


और तो और इस दंगे के तीन मुख्य आरोपी है एचकेएल भगत, जगदीश टाईटलर, और सज्जन कुमार .. कांग्रेस ने इन्हें इनके काम का खूब ईनाम दिया .. राजीव गाँधी ने एचकेएल भगत को 84 से लेकर 90 तक सुचना और प्रसारण मंत्री बनाया ताकि अखबारों को मैनेज किया जा सके | सज्जन कुमार और जगदीश टाईटलर को भी केबिनेट मंत्री बनाया गया ताकि इसी बहाने सिखों के जख्मो पर नमक छिड़का जा सके | जगदीश टाईटलर आज भी कांग्रेस सेवा दल का राष्ट्रिय अध्यक्ष है |

मित्रो आज सरकार बनाने के लिए 272 सांसद चाहिए जबकि राजीव गाँधी के पास उस समय 407 सांसद थे ... लेकिन उन्होंने कभी भी सिखों को न्याय दिलाने के लिए कुछ नही किया ..और उन्होंने दिल्ली के सीख विरोधी दंगो की कभी निंदा तक नही की और न ही उसके लिए कभी माफ़ी मांगी | उलटे 4 नवम्बर 1984 को दूरदर्शन पर उन्होंने कहा की "जब भी जंगल में कोई बड़ा बरगद का पेड़ गिरता है तो आसपास की जमीन हिलने लगती है और इससे छोटे छोटे पेड़ भी गीर जाते है " ये फुटेज आज भी दूरदर्शन की आर्काइव में मौजूद है |

और तो और संसद में एक उदाहरण देते हुए राजीव गाँधी के कहा था कि सोचिये आप किसी टैक्सी से जा रहे हो और अचानक पता चले की आपके टैक्सी का ड्राइवर सरदार है तो क्या आपकी रूह कांप नही जाएगी ?


खैर ... कहते है न की उपर वाला सब देखता है और उपर वाले की बेआवाज लाठी किसी को भी नही छोडती .और जब पाप का घडा भर जाता है तो उपर वाला उस पापी को ऐसा सजा देता है की रूह तक कांप जाती है .. सिखों के नरसंहार करने के लिए राजीव गाँधी को भले ही धरती की किसी भी अदालत में पेश तक नही होना पड़ा लेकिन उपर की अदालत में तो सबका हिसाब होता है ... भगवान ऐसी कुत्ते जैसी मौत किसी को न दे जैसी मौत राजीव गाँधी को मिली ..असल में राजीव गाँधी को सिखों के नरसंहार के लिए उपर वाले ने सजा दी .. उनके चीथड़े चीथड़े उड़े और ऐसे उड़े की कि कैनवास के जूतों के आधार पर माना गया की इस विस्फोट में राजीव गाँधी के चीथड़े उड़े है |

धन्य हो भगवान ..धन्य हो वाहे गुरु .. तुम्हारी जांच आयोग और तुम्हारी अदालत सर्वोच्च है ..तुम्हारे अदालतों से कोई पापी भले ही तो ४०७ सिटे क्यों न जीता हो वो भी बच नही सकता

Tuesday 9 April 2013

दिग्विजय सिंह .... मोदी जी की शादी नही हुई थी .. सगाई हुई थी और वो भी सिर्फ चार साल की उम्र में .. लेकिन इससे देश को कुछ लेना देना नही है ... देश को अगर लेना देना है तो इन नापाक, गंदे और घिनौने रिश्तो से .... जरा इन पर भी जबाब देना



१- सोनिया गाँधी से क्वात्रोची का क्या रिश्ता था ? जहाँ तक पूरी दुनिया जानती है वो सोनिया गाँधी के रिश्ते में दूर दूर तक कुछ नही लगता था ... फिर वो किस रिश्ते से सोनिया गाँधी के घर में १० सालो तक रहा ??

२- सोनिया का आखिर क्वात्रोची से कौन सा रिश्ता था की उसे बचाने ले लिए सोनिया ने पूरी भारत के कानून का मजाक बना दिया था ?

३- अगर रिश्ते की बात करते हो तो मेनका गाँधी तो इंदिरा गाँधी की सगी बहु थी .. उनके एक साल के बच्चे के साथ इंदिरा ने रात को क्यों हमेशा के लिए घर से बाहर निकाल दिया ?

४- जवाहरलाल नेहरु अपनी पत्नी जो टीबी की मरीज थी उन्हें इलाहबाद में क्यों रखते थे ? उन्हें कभी भी अपने पास क्यों नही रखा ? नेहरु दिल्ली में एडविना से इश्क फरमाते थे | इस बात का जिक्र खुद इंदिरा गाँधी ने अपनी किताब में भी किया है ..
इंदिरा गाँधी की सहेली पुपुल जयकर ने भी लिखा है की इंदिरा अपने बाप जवाहर के द्वारा अपनी माँ की उपेछा और एडविना के साथ उनके अवैध सम्बन्ध से बहुत परेशान रहती थी |

५- खुद इंदिरा गाँधी जब प्रधानमन्त्री बन गयी तब अपने पति फिरोज को लात मारकर घर से भगा दिया और उनके मरने पर उसके अंतिम संस्कार तक में नही गयी | दिग्गी राजा क्या कोई एक भी भारतीय नारी का नाम बता सकते हो जो अपने पति के अंतिम संस्कार ने न जाये ??

७- खुद इंदिरा ने पहली शादी अपने साथ पढने वाले मुहम्मद युनुस से लन्दन की एक मस्जिद में मैमुदा बेगम बनकर की थी ... मुसलमानों के मसीहा जवाहर बहुत परेशान हुए क्योकि उनकी इकलौती बेटी इस्लाम कुबूल करके मुसलमान बन गयी थी ... फिर गाँधी के द्वारा इंदिरा को समझाया गया और सर तेज बहादुर सप्रू के द्वारा इलाहबाद हाईकोर्ट में एक एफिडेविट इंदिरा के तरफ से डाला गया की मैने जो मैमुदा बेगम बनकर निकाह किया है उसे फेक घोषित किया जाये ..


८- दिग्गी राजा सारा दिन अब दुसरो पर बोलते रहते हो .. कभी कांग्रेस के दामाद राजा पर भी बोला करो ..

आखिर क्या कारण रहा की प्रियंका गाँधी के शादी के बाद राबर्ट बढेरा ने बकायदा पेपर में विज्ञापन देकर जिसमे उसने अपने बाप का फोटो तक छपवाया था घोषणा किया की मेरे सगे बाप से मेरा कोई सम्बन्ध नही है ...
फिर एक के बाद राबर्ट की बहन एक्सीडेंट में मरी , भाई और बाप होटल में मरे पाए गये ..माँ छत से गिरकर मरी .. एक भाई का आजतक कुछ पता नही की जिन्दा है भी या नही


दिग्विजय सिंह ... ठीक है की तुम्हारी पार्टी ने मीडिया को खरीद लिया है जो तुम्हारे बकवास को दिखाती रहती है ....
लेकिन काश वही मीडिया तुमसे कभी इन सवालों पर भी पूछने की हिमत्त करती

**********जितेन्द्र प्रताप सिंह ***********

आखिर नरेद्र मोदी ने गीर फारेस्ट में महिला फारेस्ट गार्ड भर्ती करने का क्रांतिकारी और विश्व में अपने तरह का अनूठा फैसला क्यों लिया था ?




मित्रो, जब मोदी जी ने गुजरात की सत्ता सम्भाली तब भूकम्प पुनर्वास के बाद उन्होंने दुसरे कामो पर ध्यान दिया | वो चौक गये जब उन्हें बताया गया की गीर ने अब सिर्फ 56 एशियाटिक बब्बर शेर बचे है | उन्होंने इस मसले पर फारेस्ट विभाग के सभी अधिकारियो और कई वन्यजीवों के विशेषज्ञ की मीटिंग बुलाई |
उन्होंने सबकी बाते सुनी ... सब समझा .. उन्हें बताया गया कि शिकारी फारेस्ट गार्डो को पैसा देकर शेरो का शिकार करते है.. और शेरो की खाले, नाख़ून व् अन्य कई चीजे चीन भेजी जाती है जहां इनकी बहुत मांग है |

फिर बैठक के अंत में नरेंद्र मोदी जी ने गीर फारेस्ट के चीफ कंजरवेटर डा अमित कुमार से कहा कि आप 70 फारेस्ट गार्ड और बीट गार्ड और 20 रेंजर की वैकेंसी निकालिए ...

लेकिन दो शर्ते डालिए --

१- प्रार्थी सासन गीर या उससे आसपास का रहने वाला हो
२- महिला हो

मित्रो, "महिला" सुनते ही बैठक में मौजूद सभी बड़े बड़े खोपड़ी वाले विशेषज्ञ चौक उठे ... किसी ने विरोध नही किया क्योकि मुख्यमंत्री के फैसले का विरोध करने की हिम्मत बड़े बड़े अधिकारियो में नही होती .. फिर थोड़ी देर के बाद डा अमित कुमार ने कहा सर क्या महिलाओ के शेरो के जंगल में काम ओर रखना ठीक होगा ? उनकी हिम्मत होगी ..

मोदी जी ने कहा अभी आप उनको नियुक्त करिये फिर मै आपको एक साल के बाद बताऊंगा की आखिर मै महिलाओ को ही इस काम पर क्यों रखना चाहता हूँ | लेकिन जब उनकी नियुक्ति हो जाये तब आप उनको मेरे से मिलाने जरुर लाइयेगा |

फिर 70 महिला फारेस्ट गार्ड, और 20 महिला फारेस्ट रेंजर की नियुक्ति के बाद जब वो मोदी जी से मिलने आई तब मोदी जी ने उनसे पूछा कि क्या आप जानती है की मैंने आपको ही क्यों इस नौकरी पर रखा .. तब किसी भी महिला से संतोषजनक जनक जबाब नही दिया |

फिर मोदी जी ने कहा की मशहूर लेखक शिवानी ने लिखा है की "सृजन का दर्द और सुख वही महसूस कर सकता है जिसने सृजन का दर्द सहा है"

आज शिकारी चंद पैसे देकर शेरो के बच्चों को और शेरो को मार रहे है ... मुझे विश्वास है की आप अब महिला है आपको पता होगा की अब किसी शेर को मारा जाय तब शेरनी का दर्द क्या होगा या जब किसी शेरनी का शिकार हो तब उसके बच्चों का दर्द क्या होता होगा | ये पुरुष फारेस्ट गार्ड चंद सिक्को की खनक से अंधे हो सकते है लेकिन मुझे विश्वास है की आपको खरीदने वाला नोट दुनिया के किसी भी टकसाल में नही छपा होगा क्योकि आपके ममता है जिसे पैसे से नही ख़रीदा जा सकता |

मित्रो, धीरे धीरे गीर ने शेरो की संख्या बढती चली गयी ... और आज 512 शेर है और अब केंद्र सरकार गीर के शेरो को कान्हा नेशनल पार्क और रणथमबौर नेशनल पार्क में भी स्थानान्तरण करना चाहती है |

मित्रो, आज महिला फारेस्ट गार्ड कभी घड़ी देखकर अपनी ड्यूटी नही निभाती बल्कि वो गीर के शेरो को अपने परिवार के सदस्यों जैसा मानती है ..

गीर में शेरो की बढती संख्या पर रिसर्च करने आज दुनिया भर के प्रकृतिप्रेमी आते है .. और नेशनल जियोग्राफिक ने भी इस पर एक डोक्युमेंट्री दिखा चूका है .. और मोदी जी के इस फोर्मुले को आज अफ्रीका और अमेरिका का वनविभाग भी अपना रहा है |

लेकिन भारत की मीडिया ???? अरे उनकी सुई तो आज भी 2002 पर अटकी पड़ी है |

Sunday 3 February 2013

राज्यसभा के उपसभापति पीजे कुरियन को बलात्कार का दोषी साबित करने के लिए आखिर और कितने सुबूत चाहिए ? क्या ये झूठ है की कुरियन का अंडरवियर बलात्कार की जगह से बरामद हुआ था ? आखिर कांग्रेस का हाथ हर बलात्कारी के साथ ही क्यों होता है ? माना की सभी कांग्रेसी बलात्कारी नही होते ..लेकिन जितने भी बलात्कारी है वो कांग्रेसी ही क्यों होते है ?




आखिर 1999 में पीरमेडु की प्रथम श्रेणी न्यायिक अदालत ने कुरियन को प्रथम दृष्टया दोषी करार दिया था .. क्योकि कुरियन के खिलाफ एक दो नही बल्कि सात सुबूत थे ..
फिर अपने एक रिशेदार जज की वजह से कुरियन बरी कैसे हो गये ?
फिर सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पड़ी के बाद भी कांग्रेस पीजे कुरियन को पद से क्यों नही हटाती ?
सुप्रीमकोर्ट ने साफ साफ कहा की पीजे कुरियन के खिलाफ पर्याप्त सुबूत है और केरल हाईकोर्ट ने सुबूतो की अनदेखी की है |

कुरियन के ड्राइवर का बयान भी है जिसमे उसने स्वीकार किया की वो पीजे कुरियन को लेकर लडकी जिस होटल में थी वहाँ गया था |

मित्रो, पुरे देश ही नही बल्कि दुनिया को हिला देने वाला ये बलात्कार केस "सुर्यनल्ली रेप केस" के नाम से जाना जाता है |  16 जनवरी 1996 के दिन एक 16 साल की लडकी "दामिनी" [काल्पनिक नाम] सरकारी बस से अकेले कालेज से घर जा रही थी .. कन्डक्टर ने उसे गलत स्टाप पर उतारकर अपहरण कर लिया फिर उसका बलात्कार किया | फिर उसने उस लडकी को दो लोगो के हवाले कर दिया | उनमें से एक बड़ा वकील और एक महिला थी |उस वकील ने भी उस लडकी का बलात्कार किया .. इस तरह से 40 दरिंदो ने उसके साथ पुरे 42 दिनों तक बलात्कार किया | फिर उन दरिंदो ने उस लडकी को दुसरे दरिंदो को सौप दिया | इस तरह से लडकी को पुरे केरल में अलग अलग जगहों पर ले जाकर बलात्कार किया गया |

26 फरवरी को एक नारियल पानी बेचने वाले की मदद से लडकी दरिंदो के चंगुल से भागने में सफल हो गयी और अपने घर पहुंची |

मीडिया में ये मामला उछलने और केरल सरकार की खूब थू थू से केरल सरकार घबडा गयी .. केरल सरकार ने केरल के जांबाज और ईमानदार आईजी पुलिस सीबी मैथ्यू की अध्यक्षता में एक स्पेशल जाँच टीम बनाई | इस टीम में कई दुसरे जांबाज और ईमानदार पुलिस अधिकारी जिसमे केके जोशुआ जैसे लोग शामिल थे |

टीम ने पुरे केरल में ताबड़तोड़ करवाई की | लेकिन एक दिन जब टीम के लोग लड़की के साथ बैठे थे तभी लडकी एक अख़बार में फोटो देखकर जोर जोर से चिल्लाती हुई भागने लगी फिर बेहोश हो गयी | टीम ने लडकी से पूछा तो पूरा केरल ही नही बल्कि पूरा देश हिल उठा | दरअसल अख़बार में केन्द्रीय मंत्री पीजे कुरियन का फोटो था जिसे देखते ही लडकी बेहोश हो गयी थी | लडकी के कहा की इस व्यक्ति (कुरियन) ने मेरा चार बार बलात्कार पंचायत घर में बंधक बनाकर किया है |

सीबी मैथ्यू ने पंचायत घर पर छापा मारा तो एक कोने में एक अंदरवियर पड़ा था | टेलर के स्टीकर के द्वारा साबित हो गया की वो अंडरवियर पीजे कुरियन का ही था | फिर मैथ्यू ने पीजे कुरियन को गिरफ्तार कर लिया और उनको मंत्री पद से इस्थिपा देना पड़ा |

सीबी मैथ्यू ने जाँच तेज की तो उनको पीजे कुरियन के खिलाफ कई और सुबूत मिले | लड़की ने जो तारीख बताई उस दिन कुरियन उसी शहर में थे | फिर पुलिस ने केन्द्रीय मंत्री कुरियन के पुरे कार्यक्रम के रुपरेखा की जाँच की तो पता चला की कलेक्टर ऑफिस में मंत्री महोदय के शाम 5.30 से लेकर रात 10.30 तक का कोई भी कार्यक्रम दर्ज नही है | फिर जाँच टीम तब और चौक उठी जब कलेक्टर ने बताया की मंत्री जी ने शाम 5.30 को अपनी सुरक्षा और अपना पूरा फ्लीट सर्किट हाउस में ही छोड़ दिया था और बिना किसी सुरक्षा के मंत्री महोदय एक निजी गाड़ी में बैठकर कही चले गये थे |

मंत्री पीजे कुरियन चला अपनी यहां के यात्रा के दौरान आरोप वाले दिन बिना सुरक्षा के शाम 5.30 बजे से रात 10.30 बजे तक कहां गए थे इस बारे में कोई भी संतोषजनक जबाब नही दिया |

इस केस में लडकी के बयान और सुबूतो के आधार पर पुलिस ने कुल 42 लोगो के खिलाफ बलात्कार, अपहरण, जान से मारने की धमकी, गलत तरीके से बंधक बनाने आदि केस में चार्जशीट दायर की | जिसमे पीजे कुरियन का नाम भी था | कुरियन को बलात्कार और सामूहिक बलात्कार के केस में चार्जशीट किया गया था |

फिर तीन साल चले मुकदमे में गवाहों के बयानों, लडकी के बयान और कई अन्य सुबूतो के आधार पर 1999 में पीरमेडु की प्रथम श्रेणी न्यायिक अदालत ने कुरियन को प्रथम दृष्टया दोषी करार दिया | और कुरियन जेल भेज दिए गये |

फिर कुरियन ने पैसे और अपने प्रभाव के दम पर अपने एक जज रिश्तेदार की मदद से केरल हाईकोर्ट से राहत पाने के कामयाब हो गया |

पूरा देश केरल हाईकोर्ट के इस निर्णय से दंग रह गया क्योकि 42 आरोपियों में से 34 आरोपीयो को बरी कर दिया | जबकि उनके खिलाफ कई सुबूत थे |


फिर जब मामला सुप्रीम कोर्ट ने गया तो सुप्रीम कोर्ट ने केरल हाईकोर्ट के फैसले पर भारी नाराजगी दिखाई | और जस्टिस ए के पटनायक वाली खंडपीठ ने केरल हाईकोर्ट से कहा की वो इस मामले में 34 आरोपियों को निर्दोष करार दिए जाने पर जिसमे कुरियन भी है फिर से विचार करे क्योकि सुप्रीमकोर्ट ने प्रथम दृष्टया इन सबके खिलाफ कई सुबूत पाए है |
सुप्रीमकोर्ट के इस आदेश से केरल हाईकोर्ट ने अपने पुराने फैसले को रद्द करते हुए बरी किये गये सभी 34 आरोपियों जिसमे तबके केन्द्रीय मंत्री और वर्तमान में राज्यसभा के उपसभापति पीजे कुरियन भी शामिल है उनको नये सिरे से सम्मन भेजने की तैयारी कर रहा है |

मां-बाप ने किया सुप्रीमकोर्ट के फैसले का स्वागत
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सूर्यनेल्ली गैंगरेप मामले में 35 आरोपियों को बरी करने के हाईकोर्ट के आदेश को बृहस्पतिवार को सुप्रीम कोर्ट द्वारा रद्द करने के फैसले का पीड़ित लड़की के माता-पिता, राजनेताओं और महिला अधिकार कार्यकर्ताओं ने स्वागत किया है। दूसरी ओर राज्य के मुख्यमंत्री ओमान चांडी ने कहा कि इस मामले में कानून अपना काम करेगा।

इदुक्की जिले के रहने वाले पीड़ित लड़की के पिता ने कहा कि हम भगवान को धन्यवाद देते हैं। न्याय के लिए हमारी प्रार्थनाएं सुन ली गईं हैं। लड़की की मां ने कहा कि लंबे समय तक न्याय के लिए लड़ने के दौरान जिन लोगों ने सहायता की, मैं और मेरे पति उनके आभारी हैं।

इस मामले को आगे ले जाने के लिए पीड़ित लड़की के परिजनों की मदद करने वाले सीपीआई (एम) नेता व पूर्व मुख्यमंत्री वीएस अच्युतानंदन ने कहा कि उन्हें खुशी है कि देर से ही सही, पर न्याय मिला।
दूसरी ओर स्पेशल जांच टीम के सदस्य रहे केके जोशुआ ने कहा कि इस मामले की ठीक से जांच नहीं की गई है। टीम के प्रमुख सिबी मैथ्यू ने यह जानने की कोई कोशिश नहीं की कि उस वक्त केंद्रीय मंत्री रहे कुरियन अपनी यहां की यात्रा के दौरान आरोप वाले दिन बिना सुरक्षा के शाम 5.30 बजे से रात 10.30 बजे तक कहां गए थे। पीड़ित लड़की हमेशा अपने बयान पर कायम रही है और शोषण करने वाले सभी 42 लोगों के नाम बताती रही है।

पीड़ित लडकी के बयान का वीडियो देखे 

http://www.youtube.com/watch?v=J-dl8cVPsYY

Thursday 31 January 2013

कांग्रेसियो के नीचता की हद हो गयी .. १६ साल पुराने जिस मामले में गुजरात के आठ विभागों के केबिनेट मंत्री बाबुभाई बोखिरिया सुप्रीम कोर्ट के द्वारा बाइज्जत बरी हो चुके है उस केस को दुबारा खोलने के लिए पहले पोरबन्दर कोर्ट में अर्जी दी .. फिर कोर्ट के द्वारा अस्वीकार किये जाने के बाद गुजरात हाईकोर्ट में अर्जी दी |






मित्रो, बाबुभाई बोखिरिया  1998 से 2002 तक गुजरात के खान, खनन व खनिज, कृषि, मत्स्यउद्योग मंत्री थे .. फिर कांग्रेस के नेता अर्जुन भाई ने साजिश करने उनके उपर खनिज रायल्टी में हेराफेरी का आरोप लगाकर सीबीआई के द्वारा उन्हें तब गिरफ्तार करवा दिया जब वो लन्दन से अहमदाबाद एयरपोर्ट पर उतरे थे .. उन्हें घर भी नही जाने दिया गया था और सीबीआई उन्हें बगवदर थाने लेकर गयी थी |

मित्रो, सोचिये इसी कांग्रेस के राज में देशद्रोही ओबैसी के खिलाफ सैकड़ो मामले दर्ज हुए .. कोर्ट ने उसे गिरफ्तार करने का आदेश दिया लेकिन वो आराम से लन्दन से आया और हवाईअड्डे से सीधे अपने हजारो समर्थको के साथ घर चला गया था ..

मित्रो, लाइम स्टोन की रायल्टी के केस में बाबुभाई को पहले पोरबन्दर कोर्ट फिर गुजरात हाईकोर्ट और फिर अंत में सुप्रीमकोर्ट ने बरी कर दिया | क्योकि बाबुभाई की कम्पनी ने खनिज की पूरी रायल्टी भरी हुई थी इसलिए सुप्रीमकोर्ट ने कहा की बाबुभाई को राजनितिक रंजिश की वजह से झूठे फंसाया गया है |

लेकिन बाबुभाई से अपनी करारी हार से तिलमिलाए अर्जुन भाई मोधवाडिया हर रोज पर्दे के पीछे नई नई साजिशे रच रहे है | जब बाबुभाई जीते तो अर्जुन भाई ने ये सोचा की बाबुभाई मंत्री न बने इसलिए उन्होंने एक पालतू आदमी से राष्ट्रपति को पत्र लिखवाया की उसकी जान को बाबुभाई से खतरा है और उन्हें मंत्री बनने से रोका जाये | और अर्जुन भाई ने उस पत्र को गुजरात के अखबारों में भी छपवाया |

लेकिन नरेंद्र मोदी जी ने अर्जुन भाई के नौटकी की कोई परवाह नही की और बाबुभाई को केबिनेट मंत्री बना दिया | लेकिन अर्जुन भाई तब और तिलमिला गये जब नरेद्र मोदी जी ने बाबुभाई को कृषि, सिंचाई, मत्स्य उद्योग, सहकारिता, पशुपालन, जलसम्पत्ति, गौ सम्वर्धन, बांध विकास आदि महत्वपूर्ण विभाग दे दिए | इससे अर्जुन भाई को लगा की अब वो पूरी जिन्दगी पोरबन्दर में बाबुभाई से जीत नही सकते क्योकि बाबुभाई मंत्री बनते ही ताबड़तोड़ कई प्रोजेक्ट का एलान कर दिया | और अपना मोबाईल नम्बर पोरबन्दर के हर गाँव में लोगो को दे दिया की कोई भी काम हो आप मुझे कभी भी फोन कर सकते है | आज बाबुभाई को कोई भी फोन करे तो वो तुरंत ही उसपर एक्शन लेते है |

मित्रो, इतना ही नही बाबुभाई को एक पुराने मर्डर केस में फिर से फंसाने की कोशिश कांग्रेसी कर रहे है | पोरबन्दर में अक्तूबर 2005 में कांग्रेस नेता और लाइम स्टोन कारोबारी मोणुभाई मोढवाडिया का मर्डर उनके घर के सामने हो गया था | इस केस में पुलिस ने भीमा दुला, लछमन दुला, मेरमण माले को गिरफ्तार किया | मृतक की तलाशी में पुलिस को एक पत्र मिला जिसमे लिखा था की मेरी जान को मेरे कारोबारी प्रतिद्वंदीयो भीमा दुला और बाबुभाई से खतरा है | लेकिन पुलिस जाँच में ये पाया गया की ये पत्र किसी ने बाद में डाला था | इसलिए चार्जशीट में बाबुभाई बोखिरिया का नाम नही डाला गया |

पोरबन्दर फास्टट्रेक कोर्ट और राजकोट की एपेक्स कोर्ट ने भी इस मामले में बाबुभाई को निर्दोष पाया | यहाँ तक की गुजरात हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट ने भी इस केस की सीबीआई जाँच की मांग ठुकरा दी |
हाईकोर्ट ने कहा की यदि किसी मृतक के जेब से पत्र निकले की उसकी जाँच को किसी से खतरा है और यदि उसके खिलाफ कोई सुबूत न हो तो उसके खिलाफ केस नही चलाया जा सकता | कोर्ट में ये भी सवाल उठा की यदि किसी मृतक की जेब से पत्र निकले की उसकी जान को प्रधानमन्त्री से खतरा है तो क्या प्रधानमन्त्री के खिलाफ बिना किसी सुबूत के सिर्फ एक पत्र के आधार पर मुकदमा चलाया जा सकता है ?

मित्रो, गुजरात हाईकोर्ट मोणुभाई मर्डर केस में बाबुभाई के खिलाफ केस चलाने की अर्जी को ठुकरा दिया .. हलांकि आज भी सुप्रीम कोर्ट में ये मामला लम्बित है की क्या किसी मृतक की जेब में मिले पत्र के आधार पर किसी के खिलाफ हत्या जैसी संगीन केस में केस चलाया जा सकता है या नही .. इसी तरह से दुसरे कई मामलो में सुप्रीमकोर्ट ने कहा है की मृतक की जेब में मिले पत्र में यदि किसी का नाम हो और उसके खिलाफ कोई अन्य सुबूत न हो तो उसके खिलाफ केस नही चलाया जा सकता है |

यहाँ तक की एक केस में एक व्यक्ति ने मरने के पहले जो बयान दिया जिसमे उसने जो नाम दिया वो व्यक्ति विदेश में था ..उस केस के बाद सुप्रीमकोर्ट में सवाल उठा की क्या मरते समय भी कोई व्यक्ति झूठ बोल सकता है ? इस केस में सुप्रीम कोर्ट ने पाया की उस व्यक्ति ने मरते समय भी अपने विरोधी को फंसाने की कोशिस की क्योकि उसने जिस व्यक्ति का नाम गोली चलाने वाले के तौर पर लिया वो विदेश में था | बाद में सुप्रीम कोर्ट ने ने सभी राज्यों के हाईकोर्ट और निचली अदालतों को कहा की किसी भी व्यक्ति के मरते समय दिए गये बयान [डाइंग डिक्लेरेशन] पर आँख मुदकर विश्वास न करे | सभी पहलुओ की जाँच करने के बाद ही कोई फैसला दे |

मित्रो, अब बाबुभाई के खिलाफ इस केस में भी फिर से फंसाने की कोशिस के लिए अर्जुन भाई के इशारे पर कुछ लोगो ने पहले निचली कोर्ट में अर्जी दी जिसे कोर्ट द्वारा ठुकराने के बाद गुजरात हाईकोर्ट में अर्जी दी है | लेकिन हाईकोर्ट ने कहा है की वो बिना बाबुभाई का पक्ष जाने कोई भी निर्णय नही करेगा |ये लोग तब क्यों खामोश थे जब बाबुभाई मंत्री नही थे ?


लेकिन सत्य को कोई दबा नही सकता .. सत्य थोड़े समय के लिए परेशान हो सकता है लेकिन पराजित नही |